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वीरोदय का स्वरूप
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शमशानभूमि में, कभी गिरि-कन्दराओं में, कभी गगनचुम्बी उत्तुंग पर्वतों के शिखरों पर, कभी, कल-कल, छल-छल निनाद करती हुई सरिताओं के तटों पर और कभी जनाकीर्ण राजमार्ग पर कायोत्सर्ग मुद्रा में अचल और अडिग रूप से ध्यानस्थ खड़े रहते थे। उन्होंने अपनी श्रम-साधना और तप द्वारा अगणित प्रकार के उपसर्गों को सहन किया। इनके समक्ष शाश्वत विरोधी प्राणी भी अपना वैरभाव छोड़कर शान्ति का अनुभव करते थे। धन्य है महावीर का यह व्यक्तित्व, जिसने लौह-पुरूष का सामर्थ्य प्राप्त किया
और जिसके व्यक्तित्व के समक्ष जादू-मणि, मन्त्र-तन्त्र सभी फीके थे। अद्भुत साहसी
महावीर के समग्र जीवन में साहस और सहिष्णुता का अपूर्व समावेश हुआ था। सिंह, सर्प जैसे हिंसक जन्तुओं के समक्ष वे निर्भयता पूर्वक उपस्थित हो उन्हें मौन रूप में उद्बोधित कर सन्मार्ग पर लाते थे। महावीर ने बड़े साहस के साथ परिवर्तित होते हुए मानवीय मूल्यों को स्थिरता प्रदान की और प्राणियों में निहित शक्ति का उद्घाटन कर उन्हें निर्भय बनाया। उनकी अपूर्व सहिष्णता और अनुपम शान्ति विरोधियों का हृदय परिवर्तित कर देती थी। वे प्रत्येक कष्ट का साहस के साथ स्वागत करते थे। उनके अनुपम धैर्य को देखकर देवराज इन्द्र भी नतमस्तक रहता था। संगम देव ने महावीर के साहस की अनेक प्रकार से परीक्षा की थी। करूणामूर्ति
__महावीर का संवेदनशील हृदय करूणा से सदा द्रवित रहता था। वे अन्ध-विश्वास, मिथ्या आडम्बर और धर्म के नाम पर होने वाले हिंसा-ताण्डव से अत्यन्त द्रवीभूत थे। 'यज्ञीय-हिंसा हिंसा न भवति', के नारे को बदलने का दृढ़ संकल्प उन्होंने लिया और मानवता के ललाट पर अक्षय कुंकुम का विजय-तिलक लगाया। हिंसा, असत्य, शोषण, संचय और कुशील से त्रस्त मानव की रक्षा की। वास्तव में तीर्थंकर महावीर का समग्र जीवन करूणा का अपूर्व समवाय था। महावीर जैसा करूणा का मसीहा इस धराधाम पर कदाचित् ही जन्म ग्रहण कर सकेगा। आचार्यश्री ने वीरोदय में लिखा है कि भगवान महावीर के शासन की यह सबसे