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________________ 116 वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन जीवों को मार कर मार्ग को निरापद बनाता हूँ।" मुनिराज बोले- "अरे, भोले जीव ! तुम नहीं समझते हो कि पापाचरण में कोई किसी का साथी नहीं होता है।" भिल्लराज मुनिराज के उपदेश से अत्यधिक प्रभावित हुआ उसने पत्नी सहित उनसे अहिंसाणुव्रत ग्रहण कर उनका तत्परता पूर्वक पालन किया। अहिंसक आचरण से पुरूरवा का जीवन ही बदल गया। वह समभावी बन गया। उसके हृदय में दया और करूणा का सरोवर उत्पन्न हो गया। इसप्रकार भगवान महावीर की जीवात्मा ने आत्मोत्थान की साधना इस भिल्लराज पर्याय से प्रारम्भ की। आयु के अन्त में भील का यह जीव नश्वर शरीर को छोड़कर स्वर्ग में देव हुआ। पूर्व संस्कार-वश वह स्वर्ग के दिव्य भोगों में आसक्त नहीं हुआ और सौधर्म स्वर्ग की आयु समाप्त कर वह आदि चक्रवर्ती भरत का मारीचि नामक पुत्र हुआ। मारीचि धर्म-साधना में दृढ़ न रह सका और अज्ञानता पूर्वक पंचाग्नि तप करने से आयु को पूर्ण कर वह ब्रह्मस्वर्ग में देव हुआ। जटिल पर्याय (महावीर) महावीर का यह जीव ब्रह्मस्वर्ग से च्युत होकर आयोध्यानगरी में कपिल ब्राह्मण के यहाँ जटिल नामक पुत्र हुआ। जटिल ने वेद-स्मृति आदि ग्रन्थों का अध्ययन कर पूर्ण पांडित्य प्राप्त किया और कुमारावस्था में ही संसार छोड़ सन्यास ग्रहण कर लिया। आगम का विपरीत अर्थ कर लोगों को कुमार्ग की शिक्षा देकर जटिल उन्हें एकान्त मार्ग पर चलने के लिये प्रेरित करता था। उसने सन्यासी अवस्था में अज्ञानता से भरे दुर्द्धर तपश्चरण किये, पर उसकी साधना आध्यात्मिकता से शून्य थी। पुरूरवा पर्याय में अहिंसा का जो बीज वपन हुआ था, वह अभी तक अकुंरित न हो सका और महावीर का वह जीव उत्थान से पतन की ओर गतिशील होने लगा। पुष्पमित्र पर्याय महावीर का वह जीव सौधर्म स्वर्ग से च्युत हो अयोध्यापुरी के स्थूणागार नगर में भारद्वाज ब्राह्मण और उसकी पुष्पदत्ता नामक पत्नी से
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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