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________________ 102 वीरोदय महाकाव्य और म. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन ज्ञानावरण दूर हो जाता है तब त्रैकालिक वस्तुओं को विषय करने वाला केवलज्ञान आत्मा में प्रकट हो जाता है, आत्मा अपने शुद्ध ज्ञान स्वभाव को पा लेती है। इस पवित्र ज्ञान को प्राप्त कर भ. सर्वज्ञ हो जाते हैं। वे सर्वज्ञ कहे जाते हैं। महाकवि पं. भूरामल जी ने अनेक लौकिक दृष्टान्तों से सर्वज्ञ की सिद्धि की है तथा अन्त में कहा है कि जगत की प्रवृत्ति समीचीन रूप से अनेकान्त मार्ग से ही चल सकती है, अन्यथा नहीं। अतः सर्वज्ञ-प्रशस्ति ही सत्यानुगत है, सच्ची है - वृथाऽभिमानं व्रजतो विरूद्ध प्रगच्छतोऽस्मादपि हे प्रबुद्ध !| प्रवृत्तिरेतत्पथतः समस्ति ततोऽस्य सत्यानुगता प्रशस्तिः ।। 23 ।। -वीरो.सर्ग.201 मोक्षप्राप्ति - शरद ऋतु की वेला में सर्ववेत्ता भगवान महावीर ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की रात्रि को एकान्तवास किया और रात्रि के अन्तिम समय में पावानगरी के उपवन में पार्थिव शरीर त्याग कर मोक्ष प्राप्त किया। उनके मोक्ष प्राप्त कर लेने पर उनके प्रधान शिष्य इन्द्रभूति को उनका स्थान प्राप्त हुआ। भ. महावीर के बाद की स्थिति - भगवान महावीर के मोक्ष प्राप्त कर लेने पर उनके द्वारा उपदिष्ट धर्म 'दिगम्बर' और 'श्वेताम्बर' – इन दो सम्प्रदायों में विभक्त हो गया। कालदोष के कारण जैनमतावलम्बी भी महावीर के उपदेश का यथोचित रूप से पालन नहीं कर सके। उनमें अनेक सम्प्रदाय व उपसम्प्रदाय बनने लगे। जिन बुराईयों से बचने के लिये भगवान महावीर ने नवीन मार्ग चलाया था, वे बुराईयाँ जैनियों में ही पुनः प्रकट होने लगीं। जैनधर्म का संचालन जैनधर्मी राजवर्ग के हाथों से निकलकर वैश्यों और क्षत्रियों के हाथों में आ गया। परिणाम स्वरूप जैनधर्म वणिकवृत्ति से प्रभावित हो गया। इतना होने पर भी यह नहीं समझना चाहिये कि जितेन्द्रिय जैनमतावलम्बियों का पृथ्वी पर सर्वथा अभाव हो गया है। आज भी अनेक
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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