________________
(vi)
विभक्त किया गया है। प्रथम अध्याय में प्राकृत, संस्कृत एवं अपभ्रंश में चरित-काव्य की परम्परा में वर्णित तीर्थकर परम्परा और भगवान महावीर के विषय में विवेचना की गई है तथा प्राकृत काव्यों में तिलोयपण्णत्ती, विमलसूरिकृत पउमचरियं और धनेश्वरसूरिकृत सुरसुन्दरीचरियं का वर्णन किया गया है।
___ संस्कृत-काव्यों की परम्परा में असगकवि विरचित वर्धमानचरित, रविषेण का पद्मचरित, जटासिंहनन्दि का वरांगचरित, वीरनन्दिकृत चन्द्रप्रभचरित और आचार्य ज्ञानसागरकृत वीरोदय महाकाव्य आदि प्रमुख हैं। अपभ्रंश-साहित्य में वर्णित चरित-परम्परा के अन्तर्गत रयधू विरचित महावीरचरिउ, सिरिहररचित वड्ढमाणचरिउ, जयमित्तहल्लविरचित वर्धमानकाव्य विशेष उल्लेखनीय हैं। इस अध्याय में अन्तिम परिच्छेद में महावीरचरित साहित्य का विकास, आधुनिक साहित्य में वर्णित महावीरचरित और भगवान महावीर के चरित का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है।
द्वितीय अध्याय में आचार्य ज्ञानसागर के व्यक्तित्व को प्रतिपादित करते हए जयोदय महाकाव्य की समीक्षा की गई है तथा इसके कथानक की ऐतिहासिकता प्रस्तुत करते हुए महावीरचरित-परम्परा का प्रभाव दर्शाया गया है। इसी अध्याय में सुदर्शनोदय की समीक्षा के अन्तर्गत शील की महिमा और गृहस्थाचार का वर्णन भी किया गया है। भद्रोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन कर समुद्रदत्त चरित की कथा का उद्देश्य प्रस्तुत किया गया है। आचार्य ज्ञानसागरकृत दयोदय चम्पू की कथावस्तु की प्राचीनता, वैशिष्ट्य और अहिंसा-व्रत की उपादेयता भी प्रस्तुत की गई है।
तृतीय अध्याय में वीरोदय के स्वरूप को प्रतिपादित करते हुये काव्य की महत्ता, भगवान महावीर के जन्म से पूर्व भारत की सामाजिक, धार्मिक स्थिति का चित्रण, पूर्व-भवों का वर्णन तथा महावीर का समग्र जीवन-दर्शन दर्शाया गया है। इसके साथ ही भगवान महावीर के उपदेशों का तात्कालिक राजाओं पर प्रभाव, गृहस्थ-धर्म एवं मुनि-धर्म का भी वर्णन किया गया है। साथ ही समोशरण की रचना, दिव्य-ध्वनि का प्रभाव, सिद्धान्तों की प्ररूपणा, सर्वज्ञता की सिद्धि व भगवान महावीर का मोक्ष-गमन एवं पौराणिक आख्यानों का दिग्दर्शन कराया गया है।