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________________ आचार्यश्री ज्ञानसागर और उनके महाकाव्यों की समीक्षा 85. ___ इस प्रकार पाँच बार मृत्यु से बचकर धनकीर्ति सुखपूर्वक रहने लगा। एक दिन शुभमुहूर्त में विश्वंभर ने अपनी पुत्री धनकीर्ति को ब्याह दी और उसे महाश्रेष्ठी पद पर आसीन कर दिया। दयोदय चम्पू का वैशिष्ट्य । __ आचार्य श्री ने दयोदय में धीवर और धीवरी के व्रत-ग्रहण के प्रसंग में अहिंसा-धर्म की महत्ता बतलाई है, साथ ही उसके प्रतिपादक जैन तीर्थकरों की प्राचीनता और प्रामाणिकता का चित्रण भी वेद, उपनिषद् और भागवत्पुराण आदि के अनेकों उद्धरण देकर किया है, उनसे दयोदय की विशेषता सहज ही ज्ञात हो जाती है। इसके अतिरिक्त बीच-बीच में अनेत नीति-वाक्यों के साथ उपकथाएँ भी दी गई हैं, जिनसे प्रतिदिन व्यवहार में आने वाली कितनी ही महत्त्वपूर्ण बातों की भी शिक्षा मिलती है। अहिंसाव्रत की उपादेयता - अहिंसाव्रत का पालन प्राणीमात्र के प्रति दया की शिक्षा देता है; -क्योंकि प्रत्येक प्राणी को चोट लगने पर कष्ट की अनुभूति होती है। हिंसा करने वाले को यह सोचना चाहिये कि मैं जिसकी हिंसा कर रहा हूँ उसे जो कष्ट हो रहा है, कदाचित् कोई मुझे मारे तो मुझे भी वैसा ही कष्ट सहना पड़ेगा। जो मनुष्य होकरके धर्म, अर्थ और काम इन तीनों पुरूषार्थों को नहीं साधता उसका जन्म लेना ही व्यर्थ है, क्योंकि अर्थ और काम इन दोनों पुरूषार्थों की जड़ भी धर्म पुरूषार्थ ही है। यथा - त्रिवर्ग . - संसाधनमन्तरेण पशोरिवायुर्विफलं नरस्य। तत्रापि धर्मः प्रवरोऽस्ति भूमौ न तं विना यद्भवतोऽर्थकामौ ।। 14 ।। - दयो. च. द्वितीय लम्ब मृगसेन धीवर की पत्नी घण्टा अपने पति से अहिंसा के विषय में पूँछती है, हे भगवन्! खेती करने में तो और भी ज्यादा हिंसा होती है। जमीन को जोतने में, उसमें खाद डालने में, पानी सीचने में, फसल को
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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