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________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन .. परिच्छेद-5 दयोदय चम्पू की कथावस्तु की प्राचीनता | ... महाकवि ज्ञानसागर ने दयोदय चम्पू की कथावस्तु की प्राचीनता के विषय में लिखा है कि दयोदय में जिसप्रकार मृगसेन धीवर की कथा : दी गई है, ठीक उसी प्रकार से हरिषेणाचार्य रचित बृहत्कथाकोश में भी दी गई है! दोनों के कंथानकों में किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं है। मृगसेन धीवर की कथा यशस्तिलकचम्पू में भी पाई जाती है जिसका रचनाकाल शक् सं. 881 है अर्थात् हरिषेण कथाकोश के 28 वर्ष पीछे यशस्तिलक चम्पू रचा गया है, फिर भी दोनों के कथानकों में जो नाम आदि की विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है। इससे ज्ञात होता है कि दोनों को यह कथानक ! अपने-अपने रूप में ही पूर्व परम्परा से प्राप्त हुआ था। - मृगसेन की कथा आचार्य सोमदेवकृत यशस्तिलकचम्पू के सिवाय , ब्रह्मचारी नेमिदत्त कृत आराधना कथाकोश में भी पाई जाती है। आराधना कथाकोश के अन्त में कथानक का उपसंहारात्मक अन्यग्रन्थे कहकर जो ‘पञ्चकृत्वः किलैकस्य' इत्यादि श्लोक दिया है, वह यशस्तिलकचंम्पू का ही है, जो कि उपासकाध्ययन प्रकरण के छब्बीसवें : कल्प के अन्त में पाया जाता है। इससे सिद्ध है कि आराधना कथाकोश के रचयिता सोमदेव से बहुत पीछे हुए हैं। अतः यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि उन्होंने मृगसेन धीवर की कथावस्तु यशस्तिलक से ली है। दयोदय के मूल कथानक का रूप तो उक्त दोनों ग्रन्थों के समान ही है पर दयोदय चम्पू का कथानक संक्षिप्त है। इसलिये कथावस्तु के कुछ अंशों की इसमें चर्चा नहीं की गई है। मैत्रेयोपनिषद् के तीसरे अध्याय के उन्नीसवें सूत्र में भी लिखा है कि देश काल की अपेक्षा न करके मैं दिगम्बर सुखी हो रहा हूँ।
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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