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________________ वीरोदय महाकाव्य और भ. महावीर के जीवनचरित का समीक्षात्मक अध्ययन लगी। इधर सत्यघोष ने मरकर अजगर योनि में जन्म लिया । उसने कंचनगिरि में रश्मिवेग, श्रीधरा और यशोधरा को खा लिया। ये तीनों चौदह सागर की आयु प्राप्त करके कापिष्ठ स्वर्ग के देव हुये । वह अजगर मरकर पंकप्रभा नरक में दुःसह कष्ट भोगने लगा । (पंचम सर्ग) 76 सिंहचन्द्र का जीव स्वर्ग से आकर राजा अपराजित और रानी सुन्दरी का पुत्र चक्रायुध हुआ। जब वह युवक हुआ तो उसका संयोग चित्रमाला प्रधान पाँच हजार बालाओं से हुआ। रश्मिवेग का जीव चित्रमाला के वज्रायुध नामक पुत्र हुआ। इस प्रकार चक्रायुध का समय बीत ही रहा था कि उसके उद्यान में पिहिताश्रव नामक मुनिराज का आगमन हुआ । राजा अपराजित ने जब उनका दर्शन कर अपने पूर्वजन्म का वृतान्त सुना तो उनके मन में भी वैराग्य आ गया । अतः सब कुछ त्याग कर वे दिगम्बर मुनि बन गये। अपराजित के पश्चात् चक्रायुध राजा बना। (षष्ठम सर्ग) एक दिन बज्रायुध शिर में सफेद बाल देखकर और अपनी वृद्धावस्था का अनुभव कर संसार से विरक्त हो गया । शरीर और भोगों को अस्थिर तथा आत्मा के अविनाशीपन को विचार कर उसने अपने पुत्र वज्रायुध को सम्पूर्ण राज्य सौंप दिया और मुनि बनने के लिये वन को प्रस्थान किया। (सप्तम् सर्ग) वहाँ अपराजित मुनिराज ने उसे जैनधर्मानुसार धर्माचरण का उपदेश दिया। उनके उपदेश से प्रभावित चक्रायुध ने भी सर्वस्व त्यागकर मुनिदीक्षा ले ली। (अष्टम सर्ग) मुनि होकर पाँच महाव्रतों का पालन करते हुए वह आत्मध्यान में रमने लगा। नश्वर शरीर की चिन्ता छोड़कर उपवासादि तपों से रागद्वेष से विभुक्त होकर अन्त में केवलज्ञान पा लिया तथा अपने आस-पास के वातावरण को पाप से सर्वथा रहित कर दिया । 2 ( नवम सर्ग) समुद्रदत्त चरित की कथा का उद्देश्य समुद्रदत्त चरित में 'सुदर्शनोदय' के समान ही नव सर्ग हैं। इसमें भद्रमित्र के जन्म-जन्मान्तरों का वर्णन है। इसके माध्यम से कवि ने अस्तेय नामक महाव्रत की शिक्षा दी है और चोरी एवं असत्य भाषण के दुष्प्रभाव से बचने के लिये पाठकों को सावधान किया है। इस काव्य में
SR No.006158
Book TitleViroday Mahakavya Aur Mahavir Jivan Charit Ka Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamini Jain
PublisherBhagwan Rushabhdev Granthmala
Publication Year2005
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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