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________________ पुस्तक समीक्षा डॉ. पूर्णेन्दु भोखर __ आधुनिक युग बनाम भारतीय जीवन-सूत्र . समय से संवाद; लेखक डॉ आलोक टण्डन; नेशनल पब्लिशिंग हाउस, जयपुर, दिल्ली; प्रथम संस्करण 2015; पृ०-१३२, मूल्य -२५०/ समय से संवाद का लक्ष्य वस्तुतः किसी निरपेक्ष तत्त्वमीमांसीय काल (टाईम) की अवधारणा के किसी भी विमर्श को विस्तार देना नहीं है, बल्कि इस प्रपंचात्मक जगत् में होने वाले विविध परिवर्तनों को चिह्नित करना, क्रमिक एवं व्यवस्थित ढंग से उद्घाटित करना एवं उनसे प्रभावित जीवन के लिए एक बेहतर विकल्प की तलाश करना है। लेखक इसमें समस्त जागतिक समस्याओं को स्पर्श करने का न तो दावा करते दीखते हैं और न अपने तलाशे विकल्प की खोज की यात्रा को अंतिम ठहराने का गर्व-भाव ही दिखलाते हैं। परंतु, इतना अवश्य है कि जिन मुद्दों को लेकर वे बढ़ते हैं उन मुद्दों के लिए पाठक को दो महत्त्वपूर्ण ईंट जोड़ने अथवा दो कदम चलने के लिए विवश करते हैं। प्रवाहमान संसार में नित नई समस्याएँ उभरती हैं और उनके समाधानों के विकल्प की खोज फिसलती हुयी अगले विकल्प पर खिसकती भी रहती है। परिवर्तन चिह्नित करना, उन्हें स्पष्ट करना, उनके समाधान स्वरूप विकल्प के लिए विचार स्थिर करना कोई स्थायी एवं स्थिर प्रक्रिया नहीं है। इसलिए जिम्मेदार चिंतक की तरह लेखक आधुनिक विश्व, भारतीय समाज एवं भारतीय मानव पर अपना विमर्श फोकस करते हैं ताकि चिंतन प्रवाह की सातत्यता के बावजूद विशिष्ट समय की समस्याओं को लेकर संवाद हो सके। निरंतर प्रवाह में उभरते अनवरत मुद्दों के बीच आज का मानव इस संसार में किस तरह के मूल्यों का बहिष्करण, ग्रहण, निर्वहन, निर्धारण, पालन एवं संवर्धन करे लेखक के समय से संवाद का यही मुख्य अभीष्ट है। लेखक की सफलता यही है कि वे समस्याओं को बखूबी चिह्नित करते हैं, स्पष्ट करते हैं और उनके समाधान के लिए वैचारिक रूप से अपने तत्पर, सजग, सुचिन्त्य एवं व्यवस्थित प्रयास से पाठक को भी विमर्श के उसी तल पर लाकर खड़ा करने में सफल हो जाते हैं। लेखक प्रारम्भ में ही हमें इस तथ्य से रूबरू करा देते हैं कि (1) प्रौद्योगिकी ने जीवन के हर क्षेत्रों में काया-पलट कर दी है और (2) आधुनिकता ने, कम से कम, मानव की जीवन-शैली के प्रत्येक आयाम को विचार के लिए खोल दिया है। जहाँ परंपरागत जीवन-शैली का केन्द्र बिन्दु धर्म है वहीं आधुनिक जीवन-शैली प्रौद्योगिकी के विकास पर निर्भर है। हॉलाकि आज जिस तरह प्रौद्योगिकी ने हमें परामर्श (हिन्दी), खण्ड २८, अंक १-४, दिसम्बर २००७-नवम्बर २००८, प्रकाशन वर्ष अक्तुबर २०१५
SR No.006157
Book TitleParamarsh Jain Darshan Visheshank
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherSavitribai Fule Pune Vishva Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages172
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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