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ऋषभ जैन
कोई कोई उन्हीं वाक्यों का भिन्न भिन्न प्रकार का अर्थ बताते हुए दृष्टिगोचर होते हैं। उन्हें यह कहते हुए सुना जाता है वेद विहित हिंसा को हिंसा नहीं कहते। ऐसी अवस्था में जबकि उसका मूल वक्ता ही सिद्ध न हो अथवा जिसमें संसार भ्रमण एवं महान दुःख परम्परा के कारणभूत हिंसा जैसे महापाप का समर्थन पाया जाता है अनेक परस्पर स्ववचन बाधित तथ्यों से भरा पड़ा हो उसका वक्ता सशरीर नहीं हो तब यहाँ उसका वक्ता प्रामाणिक और निर्दोष है यह बात कौन विचक्षण स्वीकार करेगा? उसे कौन प्रमाण मानेगा और वह किसके अनुभव में आ सकेगा। यह तो हठाग्रहपूर्वक असत्य का स्वीकार कराना है। इसके सिवाय अन्य लोगों ने आप्तका जैसा कुछ स्वरूप माना है उसको देखते हुए न तो उनकी सर्वथा निर्दोषता ही सिद्ध होती है और न सर्वज्ञता ही। क्योंकि कोई भी इस बात को स्वीकार नहीं करेगा कि वीतरागता एवं सर्वज्ञता के बिना यदि कोई भी व्यक्ति कुछ भी बोलता है तो उसके वचनों में स्वतः प्रमाणिकता कभी भी नहीं मानी जा सकती। फिर धर्म जैसे विषय में तो उसे प्रामाणिक वक्ता माना ही कैसे जा सकता है ? क्योंकि धर्म का संबंध इन्द्रिय अगोचर आत्मा और परलोक से है जिसका कि सत्य पूर्ण एवं स्पष्ट ज्ञान सर्वज्ञ को ही हो सकता है। वह सर्वज्ञता भी जिसके द्वारा मूर्त अमूर्त सभी पदार्थ उनके गुणधर्म और उनकी त्रैकालिक सम्पूर्ण अवस्थाओं का युगपद साक्षात्कार हुआ करता है तब तक प्राप्त नहीं हो सकती जब तक कि वह व्यक्ति साधारण संसारी जीवों में पाये जाने वाले अज्ञान और कशाय जैसे दोषों से रहित नहीं हो जाता। अस्तु यह बात युक्तियुक्त और अच्छी तरह अनुभव में आने वाली है कि इन दोनों ही गुणों सर्वज्ञता और वीतरागता को प्राप्त किए बिना कोई भी व्यक्ति आगम सिद्ध विषयों के प्रामाणिक वर्णन करने का यथार्थतः अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता । अतएव मोक्षमार्ग के वक्ता आप्त में इन दोनों ही गुणों का रहना अत्यावश्यक है। इन दोनों गुणों का आप्त में रहना जैनागम में बताया गया है। अतएव उसका ही प्रतिपादित धर्म निर्दोष एवं सत्य होने के कारण विश्वसनीय, आदरणीय, हितोपदेशी, कल्याणकारी तथा आचरणीय है।
आप्त के दोनों विशेषणों में यह बात भी जान लेनी चाहिए कि इनमें उत्तरोत्तर के प्रति पूर्व कारण हैं। तात्पर्य यह है कि निर्दोषता ( वीतरागता ) सर्वज्ञता का कारण है, दोषों का नाश हुए बिना सर्वज्ञता प्राप्त नहीं हो सकती और सर्वज्ञता हुए बिना आगमेशित्व (आगम का प्रामाणिक प्रवक्ता) बन नहीं सकता। क्योंकि इन दोनों गुणों