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"तुलसी, सूर, कबीर, रवीन्द्रनाथ और श्री अरविन्द की काव्यकृतियों के समकक्ष यह महाकाव्य सम्प्रदायातीत ही नहीं, कालातीत है, अतः कालजयी है। मेरा मन्तव्य है कि 'मूकमाटी' जैसी अलौकिक कालजयी कविता मूल्यांकन के अभाव में कालसागर में विलुप्त न हो जाय, क्योंकि हिन्दूवाद या छदम प्रगतिशीलता दोनों ही काव्यालोचन के सही प्रतिमान नहीं बन सकते।"
प्रो. (डॉ.) देवव्रत जोशी " इसमें निहित बिम्ब विधान, प्रतीक योजना, शब्द प्रयोग, चिन्तन पद्धति कबीर की याद दिलाती है। काव्य में प्रयुक्त आप्तवचन, सूत्रवाक्य, वक्तव्य आदि कवि के चिन्तन की सफाई और अभिव्यक्ति की सादगी को प्रगट करते हैं। रसपरिपाक, वाग्वैचित्र्य, वाणी की विदग्धता, रमणीक अभिव्यंजना, अनुप्रास की छटा, अलंकारों का सौन्दर्य आदि श्रृंगार कवियों की याद दिलाते हैं।"
डॉ. शरेशचन्द्र चुलकीमठ "आचार्यजी की दार्शनिक पहुँच, चिन्तन की सूक्ष्मता, कल्पनाशक्ति की विराटता कवित्वशक्ति की विपुलता, भावशक्ति की महानता, अभिव्यक्ति की आशयगर्भता तथा दृष्टि की वर्तमानकालिकता के एक साथ दर्शन इस कृति में होते हैं।" डॉ. सुधाकर गोकाककर "हिन्दी के तीन अमर महाकाव्यों- 'पदमावत', 'रामचरितमानस' और 'कामायनी' की उज्ज्वल परम्परा में एक महाकाव्य और आ जुड़ा है और वह है 'मूकमाटी।"
डॉ. सरजू प्रसाद मिश्र "वर्तमान दम घुटानेवाली दुर्गन्धमय खूनी, विद्वेषभरी, अभावभरी, शोषणोन्मुख परिस्थितियों में परिवर्तन लाने के लिए जनसमाज कल्याण को ध्यान में रखकर इस ग्रन्थ में परोक्ष आन्दोलन का संकेत किया है।"
डॉ. केदारनाथ पाण्डेय " स्थान-स्थान पर अलंकारों की छटा, चुटीले कथोपकथन, पात्रों का सजीव चित्रण, शब्दों की आत्मा का दर्शन 'मूकमाटी' महाकाव्य को गत शताब्दी के अन्तिम दशक का हृदयग्राही काव्य सिद्ध करता है। इस अप्रतिम महाकाव्य से जो जीवन दृष्टि मिलती है वह अनुपम है।"
डॉ. कैलाशचन्द भाटिया "यह कृति समसामयिकता के आधुनिक बोध की गाथा ही नहीं, अपितु भविष्यत् चेतना का भी महाकाव्य है - अधिक विराट् आत्मशक्ति तथा अधिक व्यापक भूशक्ति की प्रेरणामयी भावात्मक भूमिका तक पहुँचने का जयपथ है।"
डॉ. महावीर सरन जैन 'मूकमाटी' एक प्रकार से आचार्य विद्यासागर के समग्र व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है, अपने समय को नया विकल्प देने का प्रयत्न है।" डॉ. प्रेमशंकर
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