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मूकमाटी-मीमांसा :: 537 (संस्कृत), ८. परीषयहजयशतक (हिन्दी), ९. सुनीतिशतकम् (संस्कृत), १०. सुनीतिशतक (हिन्दी), ११. शारदास्तुतिरियम् (संस्कृत), १२. शारदास्तुति (हिन्दी) । कुल १२ रचनाएँ, पृष्ठ ८+५२०।
द्वितीय खण्ड : [जैन आचार्यों द्वारा सृजित प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रन्थों का हिन्दी भावानुवाद] १. जैन गीता - ('समणसुत्तं' का पद्यानुवाद), २. कुन्दकुन्द का कुन्दन (‘समयसार' का पद्यानुवाद), ३. निजामृत पान [कलशागीत] ('समयसार-कलश' का पद्यानुवाद), ४. द्रव्य-संग्रह ('वसन्ततिलका' छन्द एवं 'ज्ञानोदय' छन्द में पृथक्-पृथक् पद्यानुवाद), ५. अष्टपाहुड़, ६. नियमसार, ७. द्वादशानुप्रेक्षा, ८. समन्तभद्र की भद्रता ('स्वयम्भू-स्तोत्र' का पद्यानुवाद), ९. गुणोदय ('आत्मानुशासन' का पद्यानुवाद), १०. रयणमंजूषा (रत्नकरण्डक-श्रावकाचार' का पद्यानुवाद), ११. आप्तमीमांसा ('देवागम-स्तोत्र' का पद्यानुवाद), १२. इष्टोपदेश ('वसन्ततिलका' छन्द एवं ज्ञानोदय' छन्द में पृथक्पृथक् पद्यानुवाद), १३. गोम्मटेस-थुदि ('गोम्मटेश अष्टक' का पद्यानुवाद), १४. कल्याणमन्दिरस्तोत्र, १५. नन्दीश्वर-भक्ति, १६. समाधि-सुधा-शतकम् ('समाधितन्त्र' का पद्यानुवाद), १७. योगसार, १८. एकीभाव-स्तोत्र । कुल २० रचनाएँ, पृष्ठ १०+६३८ ।
तृतीय खण्ड : [मौलिक काव्य संग्रह, शतक, आचार्य परम्परा स्तवन एवं भक्ति-गीत] १. नर्मदा का नरम कंकर, २. डूबो मत,लगाओ डुबकी, ३. तोता क्यों रोता ?, ४. निजानुभव-शतक, ५. मुक्तक-शतक, ६. स्तुति-शतक, ८. सर्वोदय-शतक, ९. आचार्य श्री शान्तिसागरजी स्तुति, १०. आचार्य श्री वीरसागरजी स्तुति, ११. आचार्य श्री शिवसागरजी स्तुति, १२. आचार्य श्री ज्ञानसागरजी स्तुति, १३. भक्ति गीत --(क) अब मैं मम मन्दिर में रहूँगा, (ख) परभाव त्याग तू बन शीघ्र दिगम्बर, (ग) मोक्ष-ललना को जिया ! कब बरेगा ? (घ) भटकन तब तक भव में जारी, (ङ) बनना चाहता यदि शिवांगना पति, (च) चेतन निज को जान जरा, (छ) समकित लाभ, (ज) My Self । कुल १३ रचनाएँ, पृष्ठ ६+४६६।।
चतुर्थ खण्ड : [समय-समय पर प्रकाशित प्रवचन-संग्रहों के संकलन रूप प्रवचनावली]क. प्रवचनामृत - समीचीन धर्म, निर्मल दृष्टि, विनयावनति, सुशीलता, निरन्तर ज्ञानोपयोग, संवेग, त्यागवृत्ति, सत्-तप, साधु-समाधि सुधा-साधन, वैयावृत्य, अर्हत् भक्ति, आचार्य स्तुति, शिक्षागुरु स्तुति, भगवद् भारती भक्ति, विमल आवश्यक, धर्म प्रभावना, वात्सल्य । (कुल १७ प्रवचन)। ख. गुरु वाणी - आनन्द का स्रोत - आत्मानुशासन, ब्रह्मचर्य - चेतन का भोग, निजात्मरमण ही अहिंसा है, आत्मलीनता ही ध्यान, मूर्त से अमूर्त, आत्मानुभूति ही समयसार, परिग्रह, अचौर्य । (कुल ८ प्रवचन)। ग. प्रवचन पारिजात - जीव-अजीव तत्त्व, आस्रव तत्त्व, बन्ध तत्त्व, संवर तत्त्व, निर्जरा, मोक्ष तत्त्व, अनेकान्त । (कुल सात प्रवचन)। घ. प्रवचन पंचामृत-जन्म : आत्मकल्याण का अवसर, तप: आत्म-शोधन का विज्ञान, ज्ञान : आत्मउपलब्धि का सोपान, ज्ञान कल्याणक, मोक्ष : संसार के पार । (कुल पाँच प्रवचन)। ङ. प्रवचन प्रदीप - समाधिदिवस : आचार्य श्री ज्ञानसागरजी, रक्षाबन्धन, दर्शन-प्रदर्शन, व्यामोह की पराकाष्ठा, आदर्श सम्बन्ध, आत्मानुशासन, अन्तिम समाधान, ज्ञान और अनुभूति, समीचीन साधना, मानवता। (कुल दस प्रवचन)। च. प्रवचन पर्व - पर्व : पूर्व भूमिका, उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य, उत्तम ब्रह्मचर्य एवं पारिभाषिक शब्दकोष । (कुल ११ प्रवचन एवं पारिभाषिक शब्दकोश)।