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मूकमाटी-मीमांसा : : 447 किन्तु उसके उचित ज्ञान (Knowledge) को आचार्यश्री ने इस काव्य के रूप में प्रस्तुत किया है । इस काव्य में प्रयुक्त शब्द 'गोरख धंधा' नहीं हैं, वे शब्द तो सौन्दर्य और सत्य में अभिव्यक्त हुए हैं ।
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आत्मोत्थान के लिए किसी परोक्ष शक्ति की सहायता अपेक्षित नहीं है। इसीलिए “अपना स्वामी आप है” (पृ. १८५) कहा और " 'पुरुष' यानी आत्मा-परमात्मा है / 'अर्थ' यानी प्राप्तव्य - प्रयोजन है" (पृ. ३४९) कहा है। और भी कहा है : “सब को छोड़कर / अपने आप में भावित होना ही / मोक्ष का धाम है" (पृ.१०९-११० ) ।
डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री ने एक जगह लिखा है : "जैन काव्यों के नायकों का लक्ष्य न तो महाभारत के समान खोए हुए राज्य को प्राप्त करना है और न रामायण के समान पैतृक अधिकार को ही पुनः हस्तगत करना है, बल्कि उनके जीवन का लक्ष्य चिरन्तन सौन्दर्य की उपलब्धि करना है।" ऐसा होते हुए भी तीर्थंकर या अन्य कोई महापुरुष को नायक के रूप में स्वीकार न करके 'माटी' को क्यों स्वीकार किया, यह प्रश्न सामने आता मैंने पहले ही कहा है कि आज नए युग में वाचक अनुरंजन प्रिय है। उसके लिए साहित्य या कला में नयापन ढूँढ़ना वाचक की प्रकृति है। माटी जड़ है, क्षुद्र है, इसमें कहने के लिए है ही क्या ? क्या कहा होगा मुनिराज ने ? क्या माटी पर भी महाकाव्य हो सकता है ?इन प्रश्नों का उत्तर ढूँढ़ने के लिए स्वाभाविकतया वाचक ग्रन्थ को पढ़ने लगता है, पढ़ते-पढ़ते पहले खण्ड में ही मन नाद माधुर्य से इतना आन्दोलित होता है कि वह आगे भी रुचि से पढ़ता है ।
माना जाता है कि काव्य का प्रयोजन आत्माभिव्यक्ति होता है । उसके लिए कवि के अनुभव तो नितान्त वैयक्तिक होते हैं, फिर भी वह उन वैयक्तिक भावों को, भावों की एकसूत्रता से समष्टि रूप में परिवर्तित कर देता है । एक परमोपकारी और परोपकारी साधु की आत्माभिव्यक्ति उस उत्तुंग अनुभूति तक मनुष्य को पहुँचा देती है, जहाँ अनुभूति अनिर्वचनीय होती है और कहीं-कहीं तो आत्मोन्नति का सूत्र बन जाती है ।
शान्त रस की रचना है यह काव्य । नायक - चरित्र नायक नीरस, जड़, अमूर्त या क्षुद्र कथ्य को सरल और मधुर बना देना रससिद्ध कवि का ही कार्य हो सकता है। रससिद्धता का अच्छा परिचय इस काव्य में वाचक को होता है। हाँ, एक बात मैं और कहना चाहता हूँ इस काव्य को सामान्य वाचक बन कर न पढ़ो, एक रसिक बन कर पढ़ो तो और भी आनन्द में वृद्धि होगी। ‘नर्मदा का नरम कंकर, 'तोता क्यों रोता ?', 'चेतना के गहराव में' और 'डूबो मत, लगाओ डुबकी' - ये काव्य संग्रह भी आपकी कृतियाँ हैं । मैंने अभी ये कृतियाँ पढ़ी नहीं, किन्तु विश्वास के साथ मुझे कहना होगा कि ये कृतियाँ भी उच्चकोटि की होंगी। वाचकों या रसिकों को अच्छा काव्यानन्द लेना हो तो उन्हें चाहिए कि ऐसी उत्कृष्ट काव्यधारा में स्वयं को बहा लें ।
पृ. ११
इतना ही नहीं, निरंतर अभ्यास
बाद स्खलन सम्भव है;