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422 :: मूकमाटी-मीमांसा कमज़ोरी, दुर्बलता का आभास दिलाता रहता है, परन्तु 'मूकमाटी' में इससे भिन्न ही प्ररूपण है :
"जो अव यानी/ अवगम'-ज्ञानज्योति लाती है,/तिमिर-तामसता मिटाकर जीवन को जागृत करती है/'अबला' कहलाती है वह !/अथवा, जो पुरुष-चित्त की वृत्ति को/विगत की दशाओं/और अनागत की आशाओं से/पूरी तरह हटाकर/ अब' यानी आगत - वर्तमान में लाती है/ 'अबला' कहलाती है वह ! बला यानी समस्या संकट है/न बला"सो अबला/समस्या-शून्य-समाधान ! अबला के अभाव में/सबल पुरुष भी निर्बल बनता है/समस्त संसार ही, फिर, समस्या-समूह सिद्ध होता है,/इसलिए स्त्रियों का यह/'अबला' नाम सार्थक है!"
(पृ. २०३) कुमारी : अविवाहित महिला 'कुमारी' शब्द से जानी जाती है, किन्तु आचार्यप्रवर कहते हैं :
" 'कु' यानी पृथिवी/'मा' यानी लक्ष्मी/और/'री' यानी देनेवाली.. . इससे यह भाव निकलता है कि/यह धरा सम्पदा-सम्पन्ना/तब तक रहेगी जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी/यही कारण है कि/सन्तों ने इन्हें
प्राथमिक मंगल माना है/लौकिक सब मंगलों में !" (पृ. २०४) स्त्री : विवाहिता नारी, त्रिलोक संहारिणी, संकुचित-संकोचित स्वभाववाली मानी जाने वाली 'स्त्री' रूपी बेडौल भद्दे प्रस्तर को शिल्पी गुरुश्रीजी की लेखनी के स्पर्शन से पूज्य-प्रतिमा-पद प्राप्त करने के समान छवि निर्मित हुई
"पुरुष की वासना संयत हो,/और/पुरुष की उपासना संगत हो, यानी काम पुरुषार्थ निर्दोष हो,/बस, इसी प्रयोजनवश वह गर्भ धारण करती है ।/संग्रह-वृत्ति और अपव्यय-रोग से पुरुष को बचाती है सदा,/अर्जित-अर्थ का समुचित वितरण करके। दान-पूजा-सेवा आदिक/सत्कर्मों को, गृहस्थ धर्मों को सहयोग दे, पुरुष से करा कर/धर्म-परम्परा की रक्षा करती है। यूँ स्त्री शब्द ही/स्वयं गुनगुना रहा है/कि/'स' यानी सम-शील संयम 'त्री' यानी तीन अर्थ हैं/धर्म, अर्थ, काम-पुरुषार्थों में
पुरुष को कुशल-संयत बनाती है/सो 'स्त्री' कहलाती है।" (पृ. २०४-२०५) सुता : सुता से तात्पर्य पुत्री माना जाता है किन्तु यहाँ इसकी व्युत्पत्ति कुछ अलग, अनूठी की गई है :
"ओ, सुख चाहनेवालो ! सुनो,/'सुता' शब्द स्वयं सुना रहा है : 'सु' यानी सुहावनी अच्छाइयाँ/और/'ता' प्रत्यय वह भाव-धर्म, सार के अर्थ में होता है/यानी,/सुख-सुविधाओं का स्रोत "सो'सुता' कहलाती है/यही कहती हैं श्रुत-सूक्तियाँ !" (पृ. २०५)