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________________ 362 :: मूकमाटी-मीमांसा संवर-बन्ध-निर्जरा तथा मोक्ष, आत्मान्वेषण, शाश्वत सत्ता का रहस्योद्घाटन । सामाजिक दृष्टि से : परिवेशगत असंगतियाँ, भारतीय बौद्धिक विघटन, मूल्य संक्रमण, नारी के गुण-अवगुण । मनोवैज्ञानिक धरातल की दृष्टि से : विशिष्ट मानसिक प्रवृत्तियाँ एवं अन्तर्ग्रन्थियों की प्रतिक्रिया स्वरूप शुभ-अशुभ विकार। राजनैतिक धरातल की दृष्टि से : व्यक्ति-राजनीति-प्रशासन-कूटनीति-आतंकवाद-लोकतान्त्रिक मूल्यों में हेरफेर, गुटनिरपेक्षता। महाकाव्य का नायक शिल्पी है, जो महान् जातीय गौरव एवं भारतीय-जैन संस्कृति का अग्रदूत है। 'मूकमाटी' के नायक की सृष्टि शिल्पी यानी कुम्भकार को संकेन्द्रित कर की गई है । कुम्भकार शान्ति, अहिंसा, सन्तुलन, यम-- नियम-आसन-प्राणायाम-प्रत्याहार-धारणा-ध्यान-समाधि का विधायक है । वह मानवता का प्रतीक एवं विशुद्ध तापस है (पृ. २६-२७) । 'खम्मामि खमंतु में' (पृ. १०५) के भाव से लिप्त कुम्भकार सहिष्णुता (पृ. ४७), संवेदनशीलता (पृ. १०५), विनयशीलता (पृ. २७२) का मूर्त रूप है । हमारे भारतीय महाकाव्यों में वस्तु बल (भौतिक बल) की अपेक्षा नायक के आत्मिक बल पर जोर दिया जाता है, अत: 'मूकमाटी' का नायक भी इसका अपवाद नहीं है। शिल्पी, जो साधना के क्षेत्र में पाँचों इन्द्रियों का संवरणकर्ता है; नव रक्षापंक्तियों से ब्रह्मचर्य के रक्षण में सदैव जागृत; क्रोध, मान, माया और लोभ रूप चार कषायों से मुक्त; अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह रूप पंचव्रतों से युक्त; पंच आचरणों-समितियों (गमन, भाषण, एषणा, आदान-निक्षेपण और मल-मूत्र आदि विसर्जन करना) का पालनकर्ता एवं मन, वचन, काया से संयत है (पृ. ३००-३०१)। आर्थिक धरातल की दृष्टि से : अर्थ का तात्पर्य – सदुपयोग । नैतिकता की दृष्टि से : आदर्शात्मक, यथार्थपरक, मूल्य शोषकों के प्रति रोष, दृढ़ संकल्प, ऊर्ध्वमुखी-अधोमुखी जीवन में अन्तर, साधनात्मक ऊर्जा का महत्त्व, निष्ठा-प्रतिष्ठा-आस्था-अनास्था एवं तात्त्विक-सात्त्विक जीवन का रहस्योद्घाटन.... सांस्कृतिक चेतना की दृष्टि से : भारतीय संस्कृति में अतिथि-सत्कार...। साहित्यिक दृष्टि से : युग संवेदना, मानवीय सामर्थ्य बोध, नवीन युग दर्शन, वीर-हास्य-रौद्र-भयानक आदि रसों का उल्लेख, लोक नीति...। उपचार की दृष्टि से : घरेलू नुस्खे आदि...। कथावस्तु : प्रथम खण्ड में कुम्भकार माटी को सार्थक रूप देना चाहता है, अत: इसके लिए अनिवार्य है कि वह माटी को कूट-पीट-छानकर मृदु माटी का रूप प्रदान करे । माटी, जो अभी वर्ण-संकर की स्थिति में है, वह अपना मौलिक वर्ण-लाभ तभी कर सकेगी, जब कंकरों को निकाल दिया जाए। दूसरे खण्ड में माटी खोदते वक्त कुम्भकार की कुदाली से घायल हुआ काँटा और उसका विद्रोह तथा नव रसों के विश्लेषण के परिप्रेक्ष्य में जैन धर्म के आचार का प्रकटीकरण । तीसरे खण्ड में शुभ-अशुभ कार्यों को परिभाषित किया गया है । चौथे खण्ड में कुम्भ का कुम्भक प्राणायाम की प्रक्रिया से लेकर सेठ की कथा, साधु के लिए आहार दान क्रिया तथा जैनागमों के आचार-सिद्धान्तों को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया गया है । मिट्टी के कुम्भ के मान-सम्मान को देख स्वर्ण कलश का आतंकवादी होना, परिवार में त्राहि-त्राहि मचाना, विपत्तियाँ, सेठ का अपने परिवार की रक्षा स्वयं एवं प्राकृतिक शक्तियों, मानवेतर प्राणियों-गज दल-नागनागिनों से प्राप्त करना तथा डूबती नाव से सबकी रक्षा करना इत्यादि । नायिका सरिता तट की माटी है । कुम्भकार की प्रतीक्षा में युग-युगों से बैठी है। माँ धरती से प्रतीक्षा की घड़ियों का अन्त सुन वह सारी रात करवटों में काट देती है। पल-पल उसे पुलक का एहसास होता है। प्रतीक्षा की घड़ियों
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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