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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 177 "अपराधी नहीं बनो/अपरा 'धी' बनो,/'पराधी' नहीं पराधीन नहीं/परन्तु/अपराधीन बनो !" (पृ. ४७७) आतंकवादियों की नाव डूब गई, पर आतंकवादी बचा लिए गए । आतंकवाद का अन्त और अनन्तवाद का श्रीगणेश हुआ। प्रभात की गुलाबी किरणों की आभा में सेठ परिवार भूतपूर्व आतंकवादियों के साथ सकुशल दूसरे किनारे पर पहुँचा, पूरा वातावरण धर्मानुराग से भर उठा। सेठ परिवार छने जल से कुम्भ को भर कर उसी स्थान की ओर बढ़ा जहाँ माटी लेने के लिए वही कुम्भकार फिर आया था । कुम्भ ने सेठ परिवार सहित कुम्भकार का अभिवादन किया । पुरानी स्मृतियाँ ताज़ा हुईं। और माँ धरती कुम्भ से कहती है : ___ "माँ सत्ता को प्रसन्नता है, बेटा/तुम्हारी उन्नति देख कर मान-हारिणी प्रणति देखकर।" (पृ. ४८२) फिर माँ कहती है : 'तुमने कुम्भकार का संपर्क पाकर सृजन-शील जीवन अपनाया, अहं का उत्सर्ग किया,अग्निपरीक्षा दी, उपसर्ग सहन किया। फिर ऊर्ध्वगामी होकर स्वयं को विसर्ग करके वर्गातीत अपवर्ग को पाया ।' सबने आदरभाव से कुम्भकार को देखा । कुम्भकार ने कहा : ‘यह सब ऋषि-सन्तों की कृपा है, मैं तो उनका सेवक मात्र हूँ।' अचानक सब का ध्यान उस वृक्ष के नीचे जाता है जहाँ एक वीतराग साधु विराजित थे। सभी वहाँ जाकर उन की प्रदक्षिणा करके, उनके चरण धोते हैं और पादोदक सिर पर लगाते हैं। गुरुदेव अभय-मुद्रा में उन्हें आशीर्वाद देते हैं। ____ क्षमार्थी आतंकवादी गुरुदेव से कहते हैं : ‘हमें अविनश्वर सुख के बारे में बताइए, क्योंकि यह समग्र संसार दुःख से भरपूर है । हमारी भावना पूरी हो' कृपा करके ऐसा वचन हमें दीजिए।' ___ सन्त ने मृदु मुस्कान के साथ कहा : 'मेरे गुरुदेव ने मुझसे कहा है कि यदि कोई भव्य भोला-भाला, भूला-भटका अपने हित की भावना से, विनीत भाव से भरा कुछ दिशाबोध चाहता हो तो...' : "हिम-मित-मिष्ट वचनों में/प्रवचन देना उसे,/किन्तु कभी किसी को/भूलकर स्वप्न में भी/वचन नहीं देना।" (पृ. ४८६) और इसी सन्दर्भ में वे मोक्ष का पथ बताते हुए कहते हैं : "क्षेत्र की नहीं,/आचरण की दृष्टि से/मैं जहाँ पर है/वहाँ आकर देखो मुझे, तुम्हें होगी मेरी/सही-सही पहचान/क्योंकि/ऊपर से नीचे देखने से चक्कर आता है/और/नीचे से ऊपर का अनुमान/लगभग गलत निकलता है। इसीलिए इन/शब्दों पर विश्वास लाओ,/हाँ, हाँ !! विश्वास को अनुभूति मिलेगी/अवश्य मिलेगी/मगर मार्ग में नहीं, मंजिल पर !" (पृ. ४८७-४८८) यह रहस्य उजागर करके सन्त महा मौन में डूब जाते हैं और मूकमाटी माहौल को अनिमेष निहारती रह जाती है । इस तरह 'मूकमाटी' की कथा के साथ चतुर्थ खण्ड समाप्त होता है । यह था 'मूकमाटी' पर एक अनुशीलन, कथा के विवरण के साथ । अब यदि हम 'मूकमाटी' की कथा पर
SR No.006156
Book TitleMukmati Mimansa Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages648
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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