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"यह रचना दर्शन, जीवन और काव्य का एक सम्मिलित अवदान है, क्योंकि यह जिस दिशा से आया है, जिस साधक की ओर से आया है, जिस प्रयोजन से आया है और जितनी उत्कटता से आया है वह निश्चय ही महत्त्वपूर्ण है।" डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय 'भारत के जातीय साहित्य की अन्तश्चेतना से 'मूकमाटी' ओतप्रोत है। इसमें वैदिक भूमिप्रेम की व्यापकता, लघुता की गरिमा के ख्यापक आर्ष महाकाव्यों की समदर्शिता, निर्गुणपन्थी सन्तों की वाणियों में गूँजती दलितों एवं अपात्रों की अस्मिता, स्वातन्त्र्य समर में तपने वाले जनों की मनस्विता, तथाकथित प्रगतिवाद की यथार्थवादिता तथा सनातन अध्यात्म-साधना की प्रतीकात्मकता एक साथ सम्पुटित है।"
प्रो. (डॉ.) प्रमोद कुमार सिंह "यह महाकाव्य हिन्दी के काव्य साहित्य की अपूर्व उपलब्धि है, भारतीय साहित्य वाङ्मय के लिए अभिनव और अद्वितीय सारस्वत उपायन है तथा खड़ी बोली के हिन्दी के महाकाव्य की रचना परम्परा की समृद्धि में सर्वधा नवीन निक्षेप है।" डॉ. श्रीरंजन सूरिदेव "भारतीय मनीषियों की रचना परम्परा में 'मूकमाटी' अधुनातन समस्याओं को चिह्नित करती मनुष्य गाथा है। इस महाकाव्य में लघुता को नमन और उसके लघुत्व में विराटता का दर्शन है। इसलिए नई भंगिमा और नई शैली में प्रस्तुत इस महाकाव्य को मानवता का महाकाव्य और संस्कृति का विश्वकाव्य कहा जा सकता है।" डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय "नई कविता के युग में धर्म, दर्शन और अध्यात्म क्षेत्र के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी अप्रतिम योगदान देनेवाले आचार्य श्री विद्यासागर कवि एवं दार्शनिक सन्त के रूप में विख्यात हैं। 'मूकमाटी' में विषयवस्तु से लेकर पात्र परिकल्पना तक परम्परा का विद्रोह है। इसमें सब नयापन है। निम्नवर्गीय पात्रों को लेकर उनके माध्यम से धर्म, दर्शन और अध्यात्म की जिज्ञासाओं के समाधान प्रस्तुत किए गये हैं।"
शेख अब्दुल वहाब 'मूकमाटी' को काव्यशास्त्र के परम्परागत नियमों और लक्षणों के चौखटे में ही देखने के आग्रही भले ही इसके महाकाव्य शब्द को देखकर नाक-भौं सिकोड़ते रहें परन्तु इसमें कोई शंका नहीं कि 'मूकमाटी' भव्य शान लिये अपने ढंग का और अपने अलग ठाठ का महाकाव्य है।"
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प्रा. माणिकलाल बोरा 'मूकमाटी' आधुनिक हिन्दी कविता की शैली में लिखी हुई "गीता" है।" डॉ. राजमल बोरा