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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: xix आ. वि. - जो यह कहा है कि दर्द, दवा और हवा - इन्हें हमें देखना आवश्यक है। जब हवा से काम नहीं चलता तब दवा काम में आती है और जब दवा से काम नहीं चलता तब दुआ काम आती है। लेकिन ये बिलकुल बाहरी जगत् की बात हो गई । जब दुआ काम नहीं आती उस समय हमें क्या करना ? कौन-सा आधार है ? किस की शरण में जाएँ और कौन-सा हमारा एक सहारा या स्तम्भ हो ? निश्चित बात यह है जब दुआ काम नहीं करती तब परम चेतना - शुद्ध आत्मतत्त्व - प्र. मा. - तो आपने, महाकाव्य जो है, यह एकदम प्रेरणा हुई और लिख दिया ऐसा है ? कितना समय लगा लिखने - स्वयम्भुवा काम करती है। .. में ? आ. वि. - लगातार लिखते गए, लगभग पौने तीन वर्ष* लगे । प्र. मा. - पहले से कोई ढाँचा बनाया था या फिर बनता चला गया ? आ. वि. - ढाँचा तो कुछ नहीं बनाया । बस प्रारम्भ हो गया और बनता गया । प्र. मा. - जैसे कुम्भ बनता चला गया । आ. वि. जी हाँ ! एक कथा पूर्ण करनी है अपने को । अतः वहाँ तक घट को ले जाना है। इसलिए बनाते चले जाओ । तदुपरान्त कुम्भ जो है वह जल धारण भी करता है और जल से पार भी करा देता है । तो जल से पार भी करा दिया यानी पूर्ण यात्रा हो गई। प्र. मा. - तो आपके इस कुम्भ में जो जीवन है, जल · क्योंकि मैं अभी पंच तत्त्व की बात कर रहा था, मिट्टी की बात हमने बहुत कर ली - अब यह जीवन जो तत्त्व है, क्या ये भी एक अमूर्त तत्त्व है या एब्सेट्रक्ट तत्त्व है ? या पानी जिसको आप कह रहे हैं, कुम्भ के अन्दर जो नीर आता है, पानी है, सलिल है, वारि है, जो भी शब्द कहें - ये दृश्य हैं ? स्पृश्य हैं ? कैसी चीज हैं ? या केवल यह धारणा है ? आ. वि. - जल भी एक तत्त्व है । जल को अपने यहाँ जल के ही रूप में अंगीकार किया और 'भू' को सब की भूमिका के रूप में अंगीकार किया है। प्र. मा. - उस दिन (दो दिन पूर्व हुई बातचीत के समय) आपने धरती को 'सर्वसहा' यानी गन्धवती, पृथिवी, भूमा कहा था जल को आपने एक चलायमान, गतिशील तत्त्व के रूप में अंगीकार किया और भूमि को स्थितिशील ? * 'मूकमाटी' ग्रन्थ आलेखन प्रारम्भ - श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर, मध्यप्रदेश में आयोजित हो रहे ग्रन्थराज 'षट्खण्डागम वाचना शिविर' (चतुर्थ) के प्रारम्भिक दिवस - बीसवें तीर्थंकर भगवान् मुनिसुव्रतनाथजी के दीक्षाकल्याणक दिवस-वैशाख कृष्ण दशमी, वीर निर्वाण संवत् २५१०, विक्रम संवत् २०४१, बुधवार, २५ अप्रैल १९८४ को । श्री दिगम्बर जैन सिद्धक्षेत्र नैनागिरिजी, छतरपुर, मध्यप्रदेश में आयोजित श्रीमज्जिनेन्द्र पंचकल्याणक एवं त्रय गजरथ महोत्सव के दौरान केवलज्ञान कल्याणक दिवस - माघ शुक्ल त्रयोदशी, वीर निर्वाण संवत् २५१३, विक्रम संवत् २०४३, बुधवार, ११ फरवरी १९८७ को । प्रकाशन- 'मूकमाटी' (महाकाव्य) - आचार्य विद्यासागर, भारतीय ज्ञानपीठ, १८, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नयी दिल्ली११० ००३, पहला संस्करण- १९८८, पृष्ठ- २४+४८८, मूल्य ५० रुपए, सातवाँ संस्करण - २००४, मूल्य - १४० रुपए । समापन -
SR No.006155
Book TitleMukmati Mimansa Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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