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मूकमाटी-मीमांसा :: 25
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(४) शब्द को नए अर्थ और अर्थ को परमार्थ देने वाली भावकृति (५) ___ आध्यात्मिक चेतना को जाग्रत करने वाली अनूठी कृति (६) कुरीतियों को निर्मूल करने वाली विशिष्ट कृति
भोग से योग की ओर मोड़ देने वाली प्रेरक कृति (८) शुद्ध सात्त्विक आचरण को प्रस्थापित करने वाली महाकृति (९) हिन्दी का अप्रतिम दार्शनिक महाकाव्य (१०) नयी कविता का सशक्त हस्ताक्षर (११) वीतराग साधु की सामाजिक सार्थकता : एक आवश्यकता (१२) वर्ण-लाभ : सत्पुरुषार्थ की छाया में (१३) शुद्ध चेतना की स्वातन्त्र्य चेतना-प्राप्ति का प्रेरक सूत्र (१४) नारी की शक्ति का प्रतिष्ठापक महाकाव्य (१५) समाजवाद का दिशादर्शक महाकाव्य (१६) श्रम का प्रतिष्ठापक महाकाव्य (१७) संयम और साधना का दिग्दर्शक महाकाव्य (१८) प्रकृति का अनुरंजक और साहित्य का विधायक महाकाव्य (१९) समता, शमता और परमार्थता का साधक महाकाव्य (२०) आतंकवाद का शामक एवं अनेकान्तवाद का प्रतिष्ठापक महाकाव्य (२१) शान्त रस और अहिंसा की चरम साधना का प्रस्थापक महाकाव्य (२२) यथार्थ श्रमण साधना का अभिव्यंजक महाकाव्य (२३) स्वयं के परिपक्व आचरण से आस्था की अनुभूति का आस्वादक महाकाव्य (२४) प्रतीकों की नयी श्रृंखला का आस्वादक महाकाव्य (२५) धर्म की यथार्थता और महानता का प्रतिष्ठापक महाकाव्य
इस महाकाव्य की ये कतिपय विशेषताएँ हैं जिनका आस्वादन सरस पाठक प्रति पंक्ति में ले सकते हैं और पा सकते हैं नया दिशाबोध, जो उन्हें काव्यसृजन की आध्यात्मिकता में सराबोर कर देता है। निमित्त-उपादान की चर्चा का तात्पर्य यहाँ यह है कि पदार्थ अपना मूल स्वभाव कभी नहीं छोड़ता। इसलिए हर द्रव्य- पदार्थ स्वयं ही अपना स्वामी है। उसे कोई बन्दी नहीं बना सकता । फिर भी ग्रहण-संग्रहण का भाव रहता है, जो संसरण का कारण होता है (पृ.१८५) । 'मूकमाटी' में इस तथ्य का गम्भीर विश्लेषण हुआ है।
___ 'मूकमाटी' के कवि ने अनेकान्तवाद को अपने जीवन में उतारा है और असन्तोष की आग को अपनी विरागता से शान्त किया है। उनमें कितनी तपन है सद्धाम पाने के लिए और उसका भीतरी आयाम कितना विस्तृत हो गया है। इस दिशा में वीतरागता का पराग पाने के लिए, इसे देखिए "कितनी तपन है यह" पंक्तियों में (पृ. १४०-१४१) । "मेरा संगी संगीत है" (पृ. १४४-१४७) में सप्तभंगियों का विश्लेषण, कुम्भ पर लिखे ६३ और ३६ अंकों की मीमांसा (पृ. १६८-१६९), 'ही' और 'भी' की विभेदक रेखा (पृ. १७२-१७३), आध्यात्मिक दार्शनिकता की कड़ी में "हमारी उपास्य देवता अहिंसा है" (पृ. ६४), सल्लेखना (पृ. ८७), कामवृत्ति कायरता है (पृ. ९४), काया का स्वभाव (पृ. ११२), नारी दर्शन (पृ. २०१-२०८), साधु रूप (पृ. ३००-३०१), सम्यक् तप (पृ. ३९१), रत्नत्रय (पृ. ९, १३, १२१, २३५, ८५, ४८३, ३८१, ४६२), नवधा भक्ति (पृ. ३१३-३४०), श्रमण का स्वरूप (पृ. ८, ३५४, २६५,