SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ lxxvi :: मूकमाटी-मीमांसा साधुवाद के वे भी सत्पात्र हैं। इस प्रकार प्रकृत कार्य में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष, साक्षात्-परम्परया जिसने भी, जो कुछ साहाय्य प्रदान किया है वे सभी साधुवाद के पात्र हैं। विशेषकर कम्प्यूटर में टंकण का पूरा कार्य सम्पन्न करने वाले श्री दिलीप जैन 'गुड्डा', बेस्ट कम्प्यूटर्स, सागर का बहुत-बहुत धन्यवाद, जिसके बिना सब किया, न किया ही रह जाता। ___ अन्तत: आचार्य श्री विद्यासागरजी के चरणों में प्रणति निवेदित करता हूँ जिनकी कृपा और जिनके वरदहस्त की छाया यदि न मिलती तो यह सब कभी भी सम्भव न हो पाता। सारे प्रासाद निर्माण में इन्हीं की कृपा सुगन्ध की तरह अदृष्टिगोचर होती हुई भी व्याप्त है । उनकी कृपा का आख्यान शब्दातीत है । वह केवल गुड़ की मिठास की भाँति अनिर्वचनीय है । शुभ कार्य में विघ्न आते ही हैं, पर आचार्यश्री का अमोघ आशीर्वचन तथा मुनि श्री अभयसागरजी की संकल्प दृढ़ता से सारे विघ्न निश्शेष हो गए। और वर्तमान स्थिति इसी सबकी वासन्तिक परिणति है । अत: उन्हें पुन: -पुन: नमन करता हुआ अपनी लेखनी को विराम प्रदान करता हूँ । राममूर्ति त्रिपाठी पृष्ठ पर इसी कार्य हेतु-- - ... सुलझाते-सुलझाने
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy