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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 515 जो इसमें पड़ा कि पिसा । पर उनके लड़के कमाल ने कमाल की बात कही। उसने बताया कि केन्द्र को पकड़े रहने वाले का चक्की कुछ भी नहीं बिगाड़ सकती। कहने का आशय यह कि रहो संसार में, पर धर्म जैसे केन्द्र से जुड़े रहो, तब तुम्हारा कुछ भी बिगड़ने वाला नहीं । कर्तृत्व में स्वातन्त्र्य है और बुद्धि में विवेक, तो यात्रा गन्तव्य को ले जायगी। आत्मानुशासन विवेक का ही नामान्तर है । त्याज्य-ग्राह्य, हेय-उपादेय का विवेक या भेद समझ कर चलना ही आत्मानुशासन है । सम्यग्दृष्टि साधक की जो बाह्य तप से निर्जरा होती है, वह उसके आत्मानुशासन का ही परिणाम है। ज्ञान और अनुभूति : श्रुतज्ञान आवरण में से झाँकता हुआ प्रकाश है । यद्यपि वह आत्मा का स्वभाव नहीं है, पर आत्मस्वभाव पाने का माध्यम अवश्य है । उसे मात्र श्रोत्रेन्द्रिय का नहीं, मन का विषय बनाना चाहिए, मन लगाकर हृदयंगम करना चाहिए । शब्द भीतरी ज्ञान तक ले जाने का माध्यम है । इस ज्ञान का प्रयोजन ध्यान है और ध्यान का प्रयोजन ज्ञान है, अनन्त सुख और शान्ति है, आत्मानुभूति है। समीचीन साधना : प्राणिमात्र सुख चाहता है पर ऐसा सुख जो निरतिशय और अविनश्वर हो । यह अपने को ही पाने की अभीप्सा है, पर एतदर्थ साधना भी समीचीन होना चाहिए। सभी बाह्य साधन मिल जाने पर भी अन्तरंग साधना अनिवार्य है। भगवान् महावीर ने कहा था : “यह सुख की परिभाषा, ना रहे मन में आशा। ईदृश हो प्रति भाषा, परित: पूर्ण प्रकाशा ॥" ऐसी ही समीचीन साधना करके महावीर ‘महावीर' हो गए। "व्यक्तित्व की सत्ता मिटा दें, उसे महासत्ता में मिला दें। आर-पार तदाकार, सत्ता मात्र निराकार ॥" "दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान । तुलसी दया न छाँडिए, जब लौं घट में प्रान ॥" मानवता परदुःख-कातरता का दूसरा नाम है। 'स्व' और 'स्वीय' के दुःख से तो मानवेतर भी दुःखी हो लेता है, पर इनसे भिन्न के दुःख से भी दु:खी होने की विशेषता मनुष्य में ही होती है । यही विशेषता मानवेतर से मानव को पृथक् और विशिष्ट बनाती है । इसी विशेषता के कारण वह दूसरों के दु:ख को दूर कर मानवता को चरितार्थ करता है और मानव होने को प्रमाणित करता है। प्रवचन पर्व (१९८५) इस संग्रह में जैन तीर्थक्षेत्र अहारजी, टीकमगढ़, मध्यप्रदेश में हुए प्रवचन संकलित हैं – पर्व : पूर्व भूमिका, क्षमा धर्म, मार्दव धर्म, आर्जव धर्म, शौच धर्म, सत्य धर्म, संयम धर्म, तप धर्म, त्याग धर्म, आकिञ्चन्य धर्म, ब्रह्मचर्य धर्म, पारिभाषिक शब्दकोश । ये प्रवचन पर्युषण पर्व पर सम्पन्न हुए हैं जो मानवीय भावनाओं के परिष्कार या उदात्तीकरण का पर्व है । अधर्माचरण से उत्पन्न होने वाले तनाव से मुक्ति दिलाना ही इसका उद्देश्य है । प्रतिवर्ष पर्युषण पर्व पर दस धर्मों का चिन्तन-मनन चलता है, जो आत्मा की खुराक है । इस खण्ड में इन्हीं दस धर्मों का निरूपण है, जिनके चिन्तन से आत्महित में प्रवृत्ति होती है। मानवता:
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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