SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: liii करना चाहिए न कि असाधु और असन्त स्वर्ण कलश और आतंकवादियों की तरह । इस संघर्ष वर्णन से दूसरी शिक्षा यह भी मिलती है कि नियति के बावजूद पुरुषार्थी साधक के दृढ़ संकल्प और पौरुष को देखकर दिव्य शक्तियाँ भी सहायक हो जाती हैं । कहा ही गया है: “न ऋते श्रान्तस्य सख्याय देवा : " - देवता भी सहायता का हाथ पुरुषार्थी की ओर भी बढ़ाते हैं जब वे देखते हैं कि पुरुषार्थी साधक पुरुषार्थ करते-करते श्रान्त हो उठा है, पर अपने संकल्प और कर्तव्य लभ्यप्राप्य पर अडिग है । पात्र - नायक और चरित्र : पारम्परिक साँचे में धीरोदात्त नायक महाकाव्य के लिए पारम्परिक साँचे में अगला तत्त्व जो अपेक्षित है वह है एक या अनेक लोक प्रसिद्ध, इतिहास प्रसिद्ध या पुराण प्रसिद्ध धीरोदात्त नायक । यह बात आरम्भ में कही जा चुकी है कि शायर - सिंह और सपूत लीक छोड़कर चलते हैं, पर पारम्परिक विरासत और सांस्कृतिक रिक्थ का निर्वाह करते हैं । नायक पौराणिक या ऐतिहासिक हो या न हो, महासत्ता अंशी धरती के अंश माटी का वह पर्याय अवश्य है, अन्तरात्मा जीव का प्रतिनिधि (घट) है | यह घट अनन्त सम्भावनाओं और अपरिमेय गुणों का आगार है । यह 'धीर शान्त' नायक है । धीरोदात्त की सम्भावना जब अंगी शान्त है तब उसका आश्रय शमप्रधान ही होगा, धीर शान्त ही होगा, न कि क्षत्रिय कुलोद्भूत प्रख्यात वंश का धीरोदात्त । यह तब होता जब अंगी वीर या शृंगार जैसा रस होता । वीर में लौकिक विजिगीषा होती है, लौकिक राग । अथवा धीर शान्त की जगह 'धीरोदात्त' भी कहें तो क्या आपत्ति है ? 'नागानन्द' नाटक का नायक जीमूतवाहन धीरोदात्त ही तो है । यह सही है कि 'औदात्त्य' सर्वोत्कृष्ट वृत्ति का ही दूसरा नाम है जो विजिगीषुता के चलते ही सम्भव है । परमार्थ का साधक सन्त तो शमप्रधान होने से उससे उदासीन और 'निर्जिगीषु' ही प्रतीत होता है । यह तथ्य आलोच्य कृति से स्पष्ट है । वह आतंकवादियों से संघर्ष नहीं कर रहा है अपितु सेठ परिवार को यही परामर्श दे रहा है कि ये असत् पक्ष के प्रतिनिधि आतंकवादी षड्यन्त्र से उपद्रव करना चाहते हैं, अत: इनके घेरे से निकल भागना चाहिए। देखिए : 66 " कुम्भ ने कहा सेठ से कि / " तुरन्त परिवार सहित यहाँ से निकलना है,/विलम्ब घातक हो सकता है" ।” (पृ. ४२२) असत् पक्ष के मूर्तिमान् विघ्न का प्रतीक स्वर्ण कलश ललकारता है : "एक को भी नहीं छोडूं, / तुम्हारे ऊपर दया की वर्षा सम्भव नहीं अब, / प्रलय काल का दर्शन / तुम्हें करना है अभी ।” (पृ. ४२१ ) उत्तरपक्ष : सपूर्वपक्ष - धीरोदात्त का इसका संकेत झारीने माटी के कुम्भ को दिया और कुम्भ ने परिवार को मौन संकेत दिया । सब भाग निकले। क्या यह ‘औदात्त्य’ है, विजिगीषुता है ? और नहीं है तो 'घट' नायक 'धीरोदात्त' कैसे ? यह तो शमप्रधान होने से परम - कारुणिक और वीतराग है, इसलिए धीरशान्त ही प्रतीत होता है । इन सबका समाधान यह है कि यद्यपि दात्त्य सर्वोत्कृष्ट होकर रहने की वृत्ति का ही दूसरा नाम है, और वह विजिगीषुता है, तो वह भी नायक घट में विद्यमान है । विजिगीषु वह भी है जो शौर्य, त्याग, दया, दान, उपकार आदि सात्त्विक गुणों से दूसरों से आगे बढ़ जाता है। विजिगीषु केवल वही नहीं है जो परापकार पूर्वक परकीय अर्थग्रहण आदि में प्रवृत्त होता है । औदात्त्य की इस अवधारणा से तो मार्गदूषक भी धीरोदात्त हो जायगा । राम आदि को भी भूमिलाभ या राज्यलाभ हुआ है परन्तु उनका मुख्य लक्ष्य है - लोक
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy