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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 449 अन्य पक्ष भी समाहित हुए हैं। महाकाव्य में माटी विषयक नायक-नायिका को खोजना और उनका पक्ष जानना भी अत्यन्त रोचक है। मान सकते हैं कि माटी नायिका और कुम्भकार नायक हो सकता है, फिर दोनों का प्रेम प्रसंग और भी महत्त्वपूर्ण है। 'मूकमाटी' महाकाव्य की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि महाकाव्य की रचना पद्धति से मानवीय जीवन दर्शन परिभाषित होता है और इसका दर्शन आरोपित नहीं वरन् अपने प्रसंग और परिवेश में से उद्घाटित होता हुआ आगे बढ़ता है : "युग के आदि में/इसका नामकरण हुआ है/कुम्भकार ! 'कुं' यानी धरती/और/'भ' यानी भाग्य-/यहाँ पर जो भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है।” (पृ.२८) महाकाव्य में काव्य की दृष्टि से शब्दालंकार और अर्थालंकार की छटा अनेक नए सन्दर्भो में प्रस्तुत हुई है। इसमें शब्द की व्युत्पत्ति, काव्य के अन्तरंग अर्थ की झाँकी के अतिरिक्त अर्थ के अनूठे और अछूते आयामों का भी दर्शन होता है। शब्दों और अर्थों के मेल से सन्त कवि आचार्य विद्यासागर ने माटी और कुम्भकार के माध्यम से युगों-युगों की उस मानवीय भावना को व्यक्त किया है जिसे आज तक इस प्रकार के प्रतीक से कोई कवि पूर्ण रूप से व्यक्त नहीं कर सका है । महाकाव्य में मंगल घट की सार्थकता गुरु के पाद-प्रक्षालन में है, जो काव्य के पात्रों का आधार है। ___अत: कहा जा सकता है कि सन्त कवि आचार्य विद्यासागर ने महाकाव्य के माध्यम से शुद्ध सात्त्विक भावों द्वारा मानवीय जीवन के धर्म को पुष्ट रूप में अपना कर 'मूकमाटी' की रचना की है । इस महाकाव्य का प्रयोजन राजनैतिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में प्रविष्ट हुई कुरीतियों को निर्मूल कर युग को शुभ संस्कारों से संस्कारित करना है और भारतीय संस्कृति को जीवित रखना है, तभी इस महाकाव्य का नामकरण हुआ है 'मूकमाटी'। [दैनिक भास्कर, जबलपुर, मध्यप्रदेश, ९ जनवरी, १९९४] पृ. ६६ उचर-क्या हुआ? मानसास्थिति भी उर्ध्वमुखी होगाई,
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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