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________________ 'मूकमाटी' : मनुष्य की यथा-कथा बशीर अहमद मयूख उपनिषद् ने सृष्टि के सर्जक को ब्रह्म कहकर पुकारा, और इसका स्थान मानव मन की गहन गुफा में बताया। कविता का उद्भव स्थल भी यही मन है। इसी गहन गुफा में भाव जगत् का आविर्भाव होता है, जहाँ दृश्य भी रहता है, द्रष्टा भी और देखने की प्रक्रिया भी चलती रहती है। लेकिन चेतना की चरम तल्लीनता में ऐसे क्षण भी आते हैं जब इस भाव जगत् में दृश्य, द्रष्टा एवं देखने की प्रक्रिया सब समाप्त हो जाती है। शेष रह जाता है केवल एक साक्षी भाव, गवाह की स्थिति । लगता है सृष्टि का रचनाकार भी इस सारी प्रक्रिया से गुज़रकर एक साक्षी-भाव में व्याप्त हो गया और इसी स्थिति में हुई इस समस्त जड़-चेतन, दृश्य-अदृश्य जगत् की सर्जना। मन के इसी साक्षी भाव से सृष्टि की रचना हुई और रचनाकार का नाम कहा गया ब्रह्मा' । इस ब्रह्म का एक और नाम है 'कवि'। यह सही नाम है, क्योंकि कवि भी सर्जक है जो शब्द ब्रह्म की सृष्टि करता है । शब्द, जो ब्रह्म की ही भाँति अजर, अमर, अविनश्वर है। 'मूकमाटी' महाकाव्य के रचनाकार कवि आचार्य विद्यासागर उपरोक्त सभी स्थितियों से गुज़रते हुए जब साक्षी भाव को उपलब्ध हुए तो मूकमाटी मुखर हो उठी। टूट गया धरित्री का मौन । धरित्री जो धारण किए हुए है अखिल भुवन को, जल भूतल को, समस्त जड़-चेतन एवं गतिमय-स्थिर को। कवि ब्रह्मा ने अपना यह सारा सृजन कवि को भेंट कर दिया और मन्त्रद्रष्टा ऋषि 'ऋग्वेद' में संघोष करने लगा : "तुभ्येमा भुवना कवे महिम्ने सोम तस्थिरे तुभ्यमर्षन्ति सिन्धवः ॥” (९-६२-२७) आचार्य विद्यासागरजी ने इसी अगम-अगोचर का ज्ञानी-द्रष्टा बनकर 'मूकमाटी' में मनुष्य की यथा-कथा कही है । इस उद्देश्य को स्वीकारते हुए रचनाकार ने कहा है : "मैं यथाकार बनना चाहता हूँ/व्यथाकार नहीं। और/मैं तथाकार बनना चाहता हूँ/कथाकार नहीं। इस लेखनी की भी यही भावना है-/कृति रहे, संस्कृति रहे आगामी असीम काल तक/जागृत"जीवित "अजित! सहज प्रकृति का वह/शृंगार-श्रीकार/मनहर आकार ले जिसमें आकृत होता है ।/कर्ता न रहे, वह/विश्व के सम्मुख कभी भी विषम - विकृति का वह/क्षार-दार संसार/अहंकार का हुँकार ले जिसमें जागृत होता है।/और/हित स्व-पर का यह निश्चित निराकृत होता है !" (पृ. २४५-२४६) धरित्री का यह उपहार मिला था मनुष्य को फूल खिलाने के लिए, इसमें बाग़ लगाने के लिए। लेकिन वह तो इसमें आग लगा रहा है, युद्ध रचाकर अपनी ही सन्तानों का भक्षण कर पशु बन गया है, और पशुओं में भी सिंह नहींश्वान । 'मूकमाटी' में सिंह और श्वान के माध्यम से कवि सम्बोधन करता है : "श्वान-जाति का एक और/अति निन्द्य कर्म है, कि
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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