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________________ 'मूकमाटी' में मानवीय बोध डॉ. ब्रजेश कुमार द्विवेदी कविता जीवन का भावपूर्ण चिन्तन होती है। कवि की संवेदनशीलता अपनी चेतना और चुनौतियों का संवहन करती हुई मानव जाति के रागात्मक अर्थों की प्रभावी प्रतीति को प्रकट करती है। कविता साधारण-जन की असाधारण क्षमता और संकल्प तथा सामर्थ्य की सहज एवं मार्मिक अभिव्यक्ति है। कवि को ऋषि की संज्ञा से अभिहित किया गया है । वह शरीर और मन से भी बहुत परे, बहुत गहरे संवेदनों और सरोकारों से जुड़ा होता है । इसीलिए जो शब्द सहज होते हैं, सरल होते हैं, वे कविता में बहुत गहरे अर्थ पकड़े हुए सारे समाज को झंकृत करते हैं। कवि शब्दों की शुभ्र स्निग्धता से समूची जड़ता में चैतन्य का प्रसार कर देते हैं। साधुसन्त, ऋषि और मुनि भी जीवन और जगत् के रहस्य को सुलझाने हेतु ज्ञान के विविध अनुषंगों को पाने की कामना करते हैं। आचार्य श्री विद्यासागरजी ने अपनी कृति 'कुन्दकुन्द का कुन्दन' ('समयसार' का काव्यानुवाद) में गुरु से कामना की है: "दो ज्ञानसागर गुरो ! मुझ को सुविद्या। विद्यादि-सागर बनूँ, तज दूं अविद्या ॥" आचार्यश्री का समग्र रचना-संसार ज्ञान और विराग की सृजनात्मक कशमकश एवं अन्तःप्रज्ञा से प्रदीप्त भव्याचरण, प्रेम की अनन्त परिव्याप्ति और राष्ट्रीय संस्कृति के ताने-बाने से बुना है। 'मूकमाटी' रचनात्मक अर्थ में प्रेम-करुणा आदि की अजस्र तरलता से स्निग्ध, साधना की प्रखरता से मण्डित, संस्कृति की साँसों से चित्रांकित, मंगल घट की स्पृहणीय, पड़ाव-दर-पड़ाव अन्तर्यात्रा है । आध्यात्मिक पिपासा की तृप्ति का मंगल विधान है। आध्यात्मिकता के हजारों प्रश्नों के उत्तर खोजने की सात्त्विक एवं साहित्यिक यात्रा है। माटी की विराटता और आन्तरिक भावबोध आत्म-कथात्मक शैली में अपने अस्तित्व व कृतित्व में गरिमामय अग्नितत्त्व को ढूँढ़ते हैं। यहाँ प्रेम की उन्मुक्त चेतना और उसकी महीनता के भीतर छिपी चिनगारियों को संयोजित कर युग-बोध और साधना की भूमि पर जीवन की सच्चाई को कवि ने समझा और परखा है। अन्तर्दृष्टि की कसौटी पर कसकर, साधक की प्रखर बौद्धिकता को उदात्त मानवीय सरोकारों से सम्बद्ध कर उनकी आत्मनिष्ठता को काव्य में रूपायित किया है। कवि अपने व्यक्तित्व का संस्पर्श देकर साधक में ज़्यादा से ज़्यादा अपने भीतर की तलाश की शक्ति प्रदान करता है। सम्पूर्णता के संकल्प से पुष्ट साधक आत्म-संघर्ष को प्रभावमय बनाता है। उसकी अनुभूति का विस्तार और चेतना का प्रवाह चारों दिशाओं को छू पाता है । कविता की अर्थवत्ता जगद्बोध और आत्मबोध की सूक्ष्म व्याख्या से जुड़कर विकसित होती है। यहाँ माटी की बाहरी दुनिया विविधता से परिपूर्ण है । सुन्दर और कलुष, कोमल और कठोर तत्त्वों से युक्त माटी प्रकृति के परिवेश का कलात्मक विधान बन कर वह कुम्हार के वैशिष्ट्य के रूप में कवि के भावबोध और विचारबोध को प्रकट करती है। मूकमाटी गाँव-समाज के सुख-दुःख, आशा-आकांक्षा और जीवन दर्शन आदि के समूचे सौन्दर्य में एवं प्रेम की कोमलतम अनुभूतियों में प्रसार पाती है। और यह माटी ही शिल्पी की मानवीय प्रतिबद्धता तथा प्रेम की परिपक्वता, आत्म-परिष्कार के सूत्रों से जुड़कर धर्म के खाँचे में बैठकर भावशक्ति का व्यापक आधार बनती है । माटी की यह
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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