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नारी के विविध रूपों के लिए कवि कहता है :
नारी :
कुमारी :
अबला :
स्त्री :
सुता :
दुहिता :
मूकमाटी-मीमांसा :: 405
उपकरण-उपकारक है ना ! / उपाधि यानी / परिग्रह- अपकारक है ना!" (पृ.८६)
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“इनकी आँखें हैं करुणा की कारिका / शत्रुता छू नहीं सकती इन्हें मिलन- सारी मित्रता / मुफ्त मिलती रहती इनसे । यही कारण है कि / इनका सार्थक नाम है 'नारी' यानी - /'न अरि' नारी / अथवा / ये आरी नहीं हैं सो" नारी"।” (पृ. २०२)
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'कु' यानी पृथिवी / 'मा' यानी लक्ष्मी/ और 'री' यानी देनेवाली / इससे यह भाव निकलता है कि यह धरा सम्पदा -सम्पन्ना / तब तक रहेगी
जब तक यहाँ 'कुमारी' रहेगी।” (पृ. २०४)
"... जो / पुरुष - चित्त की वृत्ति को / विगत की दशाओं / और अनागत की आशाओं से / पूरी तरह हटाकर / 'अब' यानी आगत - वर्तमान में लाती है/ अबला कहलाती है वह " ! बला यानी समस्या संकट है/न बला" सो अबला समस्या- शून्य-समाधान 'अबला के अभाव में सबल पुरुष भी निर्बल बनता है / समस्त संसार ही, फिर, समस्या-समूह सिद्ध होता है, / इसलिए स्त्रियों का यह ‘अबला' नाम सार्थक है !" (पृ. २०३)
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'स्' यानी सम-शील - संयम / 'त्री' यानी तीन अर्थ हैं धर्म, अर्थ, काम - पुरुषार्थों में / पुरुष को कुशल - संयत बनाती है सो. 'स्त्री' कहलाती है ।" (पृ. २०५ )
''सुता' शब्द स्वयं सुना रहा है :/ 'सु' यानी सुहावनी अच्छाइयाँ और / 'ता' प्रत्यय वह / भाव - धर्म, सार के अर्थ में होता है
यानी, / सुख-सुविधाओं का स्रोत सो - / 'सुता' कहलाती है ।" (पृ. २०५ )
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'उभय- कुल मंगल - वर्धिनी / उभय-लोक-सुख सर्जिनी
स्व-पर-हित सम्पादिका / कहीं रहकर किसी तरह भी
हित का दोहन करती रहती / सो..' दुहिता' कहलाती है ।” (पृ. २०६)
इसी प्रकार अन्य वाक्य अथवा उक्तियाँ भी सबल, सार्थक ढंग से व्यक्त हुई हैं :
" अति के बिना / इति से साक्षात्कार सम्भव नहीं