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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 403 ३. सर्वनाम से विशेषण बनाने वाले परप्रत्यय ४. क्रिया से विशेषण बनाने वाले परप्रत्यय 'रंगीन (पृ. १५९), लौकिक (पृ. ४११), धूमिल (पृ. १८७), रेतिल (पृ. ४९), अंकुरित (पृ.७), क्षेत्रीय (पृ. ३५), मलिन (पृ. ९०), करुणामय' (पृ. ८९) आदि शब्दों की रचना-प्रक्रिया इस प्रकार है- रंग+ईन = रंगीन; लोक+इक = लौकिक; धूम+इल = धूमिल; रेत+इल = रेतिल; अंकुर+इत = अंकुरित; क्षेत्र+ईय = क्षेत्रीय । उक्त संज्ञा शब्दों में 'ईन, इक, इल, इत तथा ईय' परप्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं, जो विशेषण शब्दों की रचना कर रहे हैं। उक्त एक शब्दवर्गीय परप्रत्यय अलग-अलग भाषा तथा बोली-भेदों के परिचायक हैं। 'मधुरिम (पृ. १), घनिष्ठ (पृ. २९), प्राथमिक (पृ. ११), मृदुतम' (पृ. ३५) आदि शब्दों की रचनाप्रक्रिया इस प्रकार है-मधुर+इम = मधुरिम; घना+इष्ठ = घनिष्ठ; प्रथम+इक = प्राथमिक; मृदु+तम = मृदुतम । उपर्युक्त विशेषण शब्दों में 'इम, इष्ठ, इक तथा तम' परप्रत्यय प्रयुक्त होकर विशेषण शब्दों का निर्माण कर रहे हैं। उक्त सभी परप्रत्यय संस्कृत शब्द मूल के हैं तथा मानक हिन्दी में यथावत् प्रयुक्त हो रहे हैं। एक शब्दवर्गीय होने के कारण उक्त परप्रत्यय एकाधिक स्वतन्त्र बोलियों के बोधक हैं। अत: इस विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि संस्कृत के निर्माण में अनेक बोलियों की भूमिका रही है। ___ 'इस (पृ.५), उस (पृ. ३२), किस' (पृ. २९) आदि शब्दों की रचना-प्रक्रिया इस प्रकार है-'इ+स; उ+स; कि+स या क+इस'। सर्वनाम शब्दों के अन्त में 'स' विशेषण बनाने वाला परप्रत्यय प्रयुक्त हुआ है। _ 'चलती (पृ. ४९), चलता (पृ. १६३), चलते' (पृ. ३१६) आदि विशेषण शब्दों की रचना में 'त' परप्रत्यय प्रयुक्त हुआ है। क्रिया से विशेषणों की रचना कम होती है। 'बतिआना, दुखिआना, लठिआना, सठिआना' आदि संज्ञा तथा विशेषण शब्दों में 'आ' परप्रत्यय प्रयुक्त होकर क्रिया शब्द वर्ग का निर्माण कर रहा है। कहीं-कहीं रचनाकार ने पूर्व प्रत्यय द्वारा अभिनव शब्दों की रचना प्रक्रिया का संकेत किया है, 'जैसे अच्छाअतुच्छा' (पृ. ४०८)। __कहीं-कहीं दोहरे परप्रत्ययों का प्रयोग करके शब्द रचना के मार्ग को प्रशस्त किया है, जैसे 'देहिलता' (पृ.२०९) । 'देह+इल+ता' रचना-प्रक्रिया से 'देहिलता' भाववाचक संज्ञा शब्द बना है। देह संज्ञा से 'देहिल' विशेषण बना तथा 'देहिलता' भाववाचक संज्ञा बनी। ___ उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि 'मूकमाटी' काव्य रचना में परप्रत्ययों के प्रयोग की प्रक्रिया दो प्रकार की प्रयुक्त हुई है : १. अनेक परप्रत्ययों के योग से एक शब्द वर्ग का निर्माण होना। २. एक ही परप्रत्यय के प्रयोग से एकाधिक शब्द वर्गों का निर्माण । उपर्युक्त परप्रत्यय निम्नलिखित भाषा-भेदों के परिचायक हैं : १. मानक हिन्दी के परप्रत्यय २. लोक बोलियों के परप्रत्यय 'मूकमाटी' रचना में मानक हिन्दी के प्रत्ययों की संख्या अधिक है, लोक बोलियों के प्रत्ययों का प्रयोग बहुत कम हुआ है। प्रत्ययों के प्रयोगानुपात की दृष्टि से 'मूकमाटी' की भाषा मानक हिन्दी मानी जाएगी। विभिन्न शब्द वर्गों में सम्बद्ध होकर भाववाचक संज्ञा शब्दों की रचना उक्त काव्यकृति में सबसे अधिक हुई है । वस्तुत: 'मूकमाटी' भाव तथा विचार प्रधान रचना है । यही कारण है कि इसमें भाववाचक संज्ञा बनाने वाले परप्रत्यय अधिक प्रयुक्त हुए हैं। भाववाचक संज्ञा बनाने वाले परप्रत्यय बहुस्तरीय हैं । यही कारण है कि उक्त काव्यकृति के भाव बहुआयामी तथा बहुस्तरीय हैं।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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