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________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 323 चार वर्णों में समाज विभक्त है, यथा-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र । प्रारम्भ में यह व्यवस्था कर्मणा थी । ‘उत्तराध्ययन सूत्र' में कहा गया है : "कम्मुणा बम्भणो होइ कम्मुणा होइ खत्तिओ । वइस्सो कम्मुणा होइ सुद्दो होइ कम्मुणा ।।” (२५-३१) अर्थात् मनुष्य कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से ही शूद्र होता है । किन्तु आज वर्ण व्यवस्था जन्मतः मान लेने से श्रेष्ठता के मायने भी बदल गए हैं। दलित-सवर्ण संघर्ष तथा मूल यही भावना है। आचार्यश्री 'वर्ण' को व्याख्यायित करते हुए कहते हैं : भेदभाव के "वर्ण का आशय / न रंग से है / न अंग से / वरन् चाल - चरण, ढंग से है ।" (पृ. ४७ ) कर्मणा जीवन पद्धति को स्वीकारने वाला व्यक्ति दुःखों से दूर रहता है । आचार्यश्री के अनुसार यदि गम (दु:ख) से डर हो तो श्रम से प्रेम करो : "गम से यदि भीति हो/ तो सुनो ! / श्रम से प्रीति करो ।” (पृ. ३५५) श्रमशील व्यक्ति न तो किसी पर बोझ बनता है और न ही किसी पर अन्याय करता है। वह व्यष्टि के सुख में सुख नहीं बल्कि समष्टि के सुख में सुख मानता है। 'वाद' के पीछे मान होता है जो व्यक्ति को व्यक्ति से अलग कर देता है । आचार्यश्री का मानना है : “पृथक् वाद का आविर्भाव होना / मान का ही फलदान है ।" (पृ. ५५) यह सही है । मनुष्य बनने के लिए संयमी होना आवश्यक है : "संयम के बिना आदमी नहीं / यानी / आदमी वही है जो यथा-योग्य / सही आदमी है।" (पृ. ६४) व्यक्ति की प्रवृत्तियाँ बदल गई हैं, उसके लक्ष्य बदल गए हैं, उसके सोच में परिवर्तन हुआ है। स्थिति यहाँ तक आ गई है कि उसे दूसरों के दुःख देखकर करुणा तो दूर, दर्द भी नहीं उभरता । ऐसे लोगों को पाषाण हृदय की संज्ञा देते हुए आचार्यश्री कहते हैं : "मैं तुम्हें / हृदय - शून्य तो नहीं कहूँगा / परन्तु पाषाण- हृदय अवश्य है तुम्हारा, / दूसरों का दुःख-दर्द देखकर भी / नहीं आ सकता कभी / जिसे पसीना है ऐसा तुम्हारा / सीना !" (पृ. ५० ) भारतीय संस्कृति का आदर्श और कामना सूत्र रहा है : " सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥”
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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