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________________ 306 :: मूकमाटी-मीमांसा बढ़ती है, बढ़नी ही चाहिए/अन्यथा,/वह यात्रा नाम की है यात्रा की शुरूआत अभी नहीं हुई है।" (पृ. २६७) 'अध्यात्म' के स्वरूप के प्रति कवि की दृष्टि बहुत स्पष्ट है । वह संघर्षी जीवन से ही उदात्त जीवन बोध का मार्ग निकालने का पक्षधर है : "स्वस्थ ज्ञान ही अध्यात्म है। अनेक संकल्प-विकल्पों में व्यस्त जीवन दर्शन का होता है। बहिर्मुखी या बहुमुखी प्रतिभा ही दर्शन का पान करती है,/अन्तर्मुखी, बन्दमुखी चिदाभा निरंजन का गान करती है ।" (पृ. २८८) इस प्रकार यह महाकाव्य विविध जीवनव्यापी तथ्यों और सत्यों का उद्घाटन करने में समर्थ है । भाषा, भाव और शिल्प सभी दृष्टियों से इसमें पर्याप्त नवीनता है। हाँ, कहीं-कहीं शाब्दिक खिलवाड़ या चमत्कार सृष्टि की बलवती स्पृहा ने भाव-गाम्भीर्य को क्षति अवश्य पहुँचाई है । समग्रत: कवि का यह प्रयास श्लाघनीय है । वह साधुवाद का अधिकारी है। पृ. १८ करवटें बदलदरी. .... उपयोगकीबात. +
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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