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________________ श्रेष्ठ सांस्कृतिक महाकाव्य : 'मूकमाटी' प्रो. (डॉ.) सीताराम झा 'श्याम' वैदिक, औपनिषदिक चिन्तनरस से अभिसिंचित तथा आधुनिक विचारबिन्दुओं के आलोक में उपस्थापित 'मूकमाटी' मानवीय संस्कृति की जीवन्त गाथा है । विवेच्य काव्यग्रन्थ में महाकवि आचार्य विद्यासागरजी ने सृष्टि की आरम्भिक स्थिति से लेकर मानव विकास के विविध रूपों का परिदर्शन कराते हुए बड़ी कुशलता से जीवन के चरम लक्ष्य 'का प्रतिपादन किया है। 'मूकमाटी' हिन्दी का, कदाचित्, पहला ऐसा महाकाव्य है, जिसमें अध्यात्म, धर्म, दर्शन, संस्कृति, राजनीति, समाजनीति, अर्थनीति आदि को अतिसूक्ष्म एवं रोचक कथा के रूप में उपस्थित किया गया है । गहन चिन्तन, प्रभावक वर्णन, अभिनव काव्य सौष्ठव, मुक्त छन्द एवं सरल भाषा-शैली में रचित यह विलक्षण काव्यकृति हिन्दी साहित्य की विशिष्ट निधि के रूप में समादृत होगी, इसमें सन्देह नहीं । 'मूकमाटी' की सबसे बड़ी विशेषता है जीवन को उसकी समग्रता में देखने की व्यापक दृष्टि । प्रस्तुत काव्य में पारम्परिक मान्यताओं के साथ प्रगतिशील विचारों का गुम्फन मणिकांचन संयोग का अन्यतम निदर्शन है । कवि ने सम्पन्न एवं गौरवपूर्ण अतीत के चिन्तन से प्रेरणा ग्रहण की है, बौद्धिक धरातल पर समस्या संकुल वर्तमान को अनुप्राणित किया है और सुखद भविष्य के लिए आशापूर्ण दिव्य सन्देश दिया है। इस प्रकार, महती काव्य प्रतिभा, महत् अनुष्ठान एवं महदुद्देश्य के कारण 'मूकमाटी' को एक सफल महाकाव्य होने का श्रेय स्वतः प्राप्त हो जाता है। : समीक्ष्य महाकाव्य का शुभारम्भ प्रकृति वर्णन से किया गया "न निशाकर है, न निशा है/न दिवाकर है, न दिवा, अभी दिशायें भी अन्धी हैं" (पृ. ३)। काव्य की आरम्भिक पंक्तियों में प्रात: काल का ऐसा नयनाभिराम एवं आह्लादक वर्णन - ‘“प्राची के अधरों पर / मन्द मधुरिम मुस्कान है" (पृ. १) और इतना सटीक बिम्ब : " लज्जा के घूँघट में/ डूबती-सी कुमुदिनी / प्रभाकर के कर- छुवन से / बचना चाहती है वह' (पृ. २) है कि 'कामायनी' महाकाव्य के ‘चिन्ता' 'लज्जा' एवं ‘श्रद्धा' सर्ग के कई मनोहर दृश्य अनायास ही उपस्थित हो जाते हैं । हितकारिता से युक्त रहना श्रेष्ठ साहित्य का प्रमुख लक्षण होता है। आचार्य विद्यासागर ने अपने इस महाकाव्य में समस्त लोक की कल्याण कामना की है। उनका दृष्टिकोण विभेद रहित है । वे बड़े-छोटे, धनी - निर्धन, शिक्षितअशिक्षित सबके प्रति समभाव के आग्रही हैं जो सन्त परम्परा की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है। सचमुच, महान् व्यक्ति वही है, जो लोक को सभी प्रकार के तापों से मुक्त करे । कवि ने बड़ी स्पष्टता एवं निर्भीकता से अपने प्रगतिशील विचारों को वाणी दी है : "अमीरों की नहीं / गरीबों की बात है; कोठी की नहीं / कुटिया की बात है ।" (पृ. ३२ ) 33 'मूकमाटी' की उपर्युक्त पंक्तियाँ लोकदुःख से सन्तप्त सन्त हृदय की अकृत्रिम वाणी हैं। इस उक्ति में संवेदना और सहानुभूति के साथ-साथ अपेक्षित परिवर्तनजन्य उद्घोष भी है, जो महर्षि वेदव्यास के स्वर का स्मरण कराता है : "तप्यन्ते लोकतापेन साधवः प्रायशो जनाः' - (श्रीमद्भागवत महापुराण, ८/७/४४) । इसके साथ ही, दुर्धर्ष व्यक्तित्व महाकवि निराला की कतिपय पंक्तियाँ भी मानस पटल पर अंकित हो जाती हैं : 'अमीरों की हवेली, किसानों की होगी पाठशाला" (बेला, पृ. ७० ) । यह तो निर्विवाद तथ्य है कि मानव का सम्यक् विकास नहीं हो पा रहा है। समाज में चतुर्दिक् क्षोभ, घृणा, द्वेष, भय, शोषण और उत्पीड़न का वातावरण व्याप्त है। सच्ची सहानुभूति एवं वास्तविक दया के बिना विभेद की खाई को पाटना असम्भव है | दमन एवं शोषण की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट करते हुए कवि लिखता है :
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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