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140 :: मूकमाटी-मीमांसा
अमूर्त माटी की मूर्त कहानी है, अमूर्त घट की मूर्त वाणी है पर कवि ने इनके वर्णन आदि में शब्द चित्र प्रस्तुत किए हैं । विशेषता यह है कि निर्जीव भी सजीव हो उठे हैं । इसके कृति में अनेक उदाहरण देखे जा सकते हैं। एक उदाहरण देखिए जो शब्द चित्र एवं वात्सल्य का उदाहरण है :
"माँ की गोद में बालक हो / माँ उसे दूध पिला रही हो बालक दूध पीता हुआ / ऊपर माँ की ओर निहारता अवश्य, अधरों पर, नयनों में/और / कपोल - युगल पर ।” (पृ. १५८)
ऐसे शब्द चित्र वर्षा कें ताण्डव या आतंकवाद के प्रसंग पर भी कवि ने प्रस्तुत किए हैं।
कृति की कलात्मक विशेषता है उसका प्रकृति चित्रण, वह ऐसा है जिसमें सजीवालंकार का, उपमाओं का एवं विविध भावों के अनुरूप आलम्बन, उद्दीपन के रूप में वर्णन हुआ है। कृति का प्रारम्भ ही देखिए, कितनी वत्सल प्रकृति . के चित्रण से हुआ है :
"भानु की निद्रा टूट तो गई है / परन्तु अभी वह / लेटा है माँ की मार्दव-गोद में, / मुख पर अंचल ले कर / करवटें ले रहा है । प्राची के अधरों पर / मन्द मधुरिम मुस्कान है / सर पर पल्ला नहीं है/ और सिंदूरी धूल उड़ती-सी / रंगीन - राग की आभा / भाई है, भाई !” (पृ. १)
कवि ने प्रकृति को षोडशी नायिका की तरह लज्जावान् चित्रित किया है :
" लज्जा के घूँघट में/ डूबती-सी कुमुदिनी / प्रभाकर के कर- छुवन से बचना चाहती है वह;/ अपनी पराग को - / सराग - मुद्रा कोपाँखुरियों की ओट देती है । " (पृ. २)
ऐसे वर्णन से प्रकृति के विविध नायिका रूप ही जैसे चित्रित हो उठे हैं।
कवि ने नदी के वर्णन में ऐसी ही प्रकृति का चित्रण किया है । कवि ने षड् ऋतु वर्णन में प्रकृति
सात्त्विक रूप प्रस्तुत किया है । कवि शीत- वर्षा - गरमी सभी ऋतुओं के वर्णन में सजीवता शब्द चित्रों से ही ला सका है । देखिए :
"शीत-काल की बात है / अवश्य ही इसमें / विकृति का हाथ है पेड़-पौधों की / डाल-डाल पर / पात-पात पर / हिम-पात है । " (पृ. ९० )
बदली का चित्रण कितना चित्रात्मक है :
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"सागर से गागर भर-भर / अपार जल की निकेत हुईं गजगामिनी भ्रम - भामिनी / दुबली-पतली कटि वाली
गगन की गली में अबला-सी / तीन बदली निकल पड़ी हैं ।" (पृ. १९९)
सन्ध्या का वर्णन जिसमें दिवस के अवसान का बोध है, उसका एक उदाहरण :
" दिनकर तिरोहित हुआ सो / दिन का अवसान - सा लगता है
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