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________________ xviii :: मूकमाटी-मीमांसा Satta तक ले जाना शून्य की ओर ले जाना है । आ. वि. - नहीं । शून्य की ओर नहीं । वही वास्तव में एक सही, सत्य तक पहुँचाने की यात्रा है। शब्द बोलने में आता भी आता है। बोध बोलने में नहीं आता, सुनने में नहीं आता लेकिन बोध को वाणी मिली, और ऐसा कह देते हैं । तो शब्द - प्रत्यय से अर्थ - प्रत्यय यानी बोध-प्रत्यय होता है । प्र. मा. - इसमें 'शोध' और 'बोध' आपने कहा है । आ. वि.- इसके उपरान्त 'शोध' आता है। शोध में शब्द भी गायब हो जाता है और बोध कहता है कि बहुत पंगु हूँ मैं, क्योंकि उस फूल का नाम है बोध और पेड़ का नाम है शब्द । तो शब्द के पौधों के ऊपर बोध के फूल लगें, यह कोई नियम नहीं । प्र. मा. - उसकी सुरभि तो है ? आ. वि.- इसके उपरान्त बोध के पास भले ही सुरभि हो लेकिन तृप्ति का साधन फूल नहीं । शोध में सुरभि भी है और फल भी । हमारे काम में तो दोनों आते हैं। इसलिए जब तक बोध है, तब तक शोध नहीं। बोध को ही शोध होगा यानी फूल को फल में ढलना होगा। किन्तु ध्यान रहे - फूल का रक्षण हो और फल का भक्षण 1 हो । प्र. मा.- वाह ! वाह !! तो यह शब्द से शब्दातीत तक जाने की यात्रा है। इस 'मूकमाटी' सम्बन्धी एक जिज्ञासा मेरे मन में और थी कि मनु और अणु- - ये शब्द प्रयोग किए हैं आपने । तो अणु के स्फोट को लेकर के आज विश्व में जिस तरह की बातें हो रही हैं, उस सन्दर्भ में आपका मत क्या है ? अणु की जो शोध की जा रही है, उससे मनु को कुछ लाभ होगा ? मनु कुछ आगे बढ़ेगा ? आ. वि. - नहीं। वह रोकी जाए, ऐसा मैं नहीं कह रहा हूँ। लेकिन अणु का प्रयोग क्यों किया जा रहा है ? अणु प्रयोग करने वाला मनु की परम्परा को लाँघेगा तो आनन्द नहीं ले सकेगा। स्वयं आइंस्टीन ने यह कहा कि मैंने अणु का शोध किया है, यह निश्चित बात है, लेकिन प्रयोग करने के लिए नहीं कहा । प्रकृति पर हम प्रयोग करेंगे तो निश्चित रूप से हमारी हार होगी और जब तक मनुष्य का दिल और दिमाग़ ठिकाने है तब तक ये एटम बम, हाइड्रोजन बम आदि हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं करेंगे। लेकिन जिस दिन यह मस्तिष्क / मन विकृत हो जायगा वह हमारे लिए आत्मनाशी होगा । इसलिए प्रयोग के लिए नहीं कहा है। योग रखिए, प्रयोग नहीं । : प्र. मा. - परन्तु कवि तो यह मानता है कि वह सदा वियोग में रहता "वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान । उमड़ कर आँखों से चुपचाप बही होगी कविता अनजान ।" इस दुनिया की सारी कविता अतृप्ति फूटी है। आ. वि. - बहुत अच्छा । सुनिए ! वह जो योग-संयोग व वियोग के उलझन में फँसा है, वह निश्चित रूप से, नियोग रूप से योग का आधार नहीं ले सकता और यदि योग का आधार नहीं ले सकेगा तो उसके उपयोग में विश्व है, यह आ ही नहीं सकेगा । यहाँ पर लोगों का यह कहना है कि यह तो सन्तों का मार्ग है। मुनियों का मार्ग है। यहाँ मुक्त होकर आप मौन की ओर, परम मोक्ष की ओर जाएँगे । प्र. मा. - आ. वि. - नहीं, नहीं, नहीं । प्र. मा. - परन्तु बेचारा कवि जो है वह दर्द में छटपटाता रहता है : "दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना।"
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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