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________________ 132 :: मूकमाटी-मीमांसा परिणामों, समाज की असमान व्यवस्था पर विचार प्रकट करते हैं। किसी भी कार्य में ध्येय की दृढ़ता ही महत्त्वपूर्ण होती है, अन्यथा चंचलता वैसे ही आग लगा देगी जैसे मशाल । मनुष्य का जीवन मशाल-सा भमकने वाला नहीं होना चाहिए अपितु दीपक-सा सौम्य, अन्धकार को पीने वाला होना चाहिए । पथ-दर्शक होना चाहिए । आचार्य कवि विविध मूल्यवान् घटों के आक्रोष द्वारा मानव मन के स्वभाव, उसके कषायभाव आदि का वर्णन करते हुए उससे छूटने का मार्ग ही प्रशस्त करते हैं। घटों के संवाद द्वारा तत्त्व निरूपण व उनकी सरल बोधगम्य व्याख्याएँ निरूपित हुई हैं। समता का एक उदाहरण: "किसी रंग-रोगन का मुझ पर प्रभाव नहीं, सदा-सर्वथा एक-सी दशा है मेरी/इसी का नाम तो समता है।" (पृ. ३७८) मनुष्य में भोगों के प्रति अनासक्ति बढ़े, यही संयम के लिए आवश्यक है। ____ आज मृत्तिका घट अकेला पड़ गया । दूसरी ओर अनेक बहुमूल्य घट अपना बहुमत बना लेते हैं । आज के जनतन्त्र की यही तो विडम्बना है कि बहुमत के कारण पात्र को भी अपात्र की कोटि में आ जाना पड़ता है। __ आज घर के सभी लोग प्रसन्न हैं, क्योंकि साधु का आहार निर्विघ्न समाप्त हो गया। मानों उन्हें मनोवांछित फल मिल गया। सेठ को नींद नहीं आती । संसार के प्रति जैसे नाता ही टूट गया। धन के प्रति मोह समाप्त हो गया। कवि सामाजिक परिवेश को भूला नहीं तभी तो विवाह जैसे संस्कारी कार्य में दहेज को घृणित मानकर धन लोलुपों पर व्यंग्य करता है : "लोभी पापी मानव/पाणिग्रहण को भी/प्राण-ग्रहण का रूप देते हैं।" (पृ. ३८६) आज मजदूर या किसानों को कम वेतन देकर सेठ लोग जो शोषण कर रहे हैं, उसे भी कवि भूला नहीं। मानवता का लोप मानव कैसे कर रहा है, इसकी ओर भी कवि का निर्देश है । सेठ अस्वस्थ हो गए। भूख-प्यास के कारण कमजोर हो गए। ऐसी स्थिति का कवि यथार्थ चित्रण ही नहीं करता अपितु सही बोध देकर यही समझाता है कि मात्र शरीर सुखाना धर्म नहीं है : "तन की भी चिन्ता होनी चाहिए,/तन के अनुरूप वेतन अनिवार्य है, मन के अनुरूप विश्राम भी।/मात्र दमन की प्रक्रिया से/कोई भी क्रिया फलवती नहीं होती है,/केवल चेतन-चेतन की रटन से,/चिन्तन-मनन से कुछ नहीं मिलता !" (पृ. ३९१) कवि प्रकृति और पुरुष के भोग्य-भोग्या सम्बन्धी चर्चा करते हुए विषय-वासना के दुष्परिणाम को समझाता है। वासना पुरुष को कितना बेहाल बना सकती है, इसका वर्णन प्रस्तुत किया है : “यही तो पुरुष का पागलपन है/ "पामर-पन जो युगों-युगों से/विवश हो,/हवस के वश होता आया है।" (पृ. ३९४) वर्तमान चिकित्सकों की लोभवृत्ति भी कवि की कलम से बच नहीं सकी। चिकित्सक का कर्तव्य उसकी निर्लोभ वृत्ति का परिचय देता है। रोगी के लिए पथ्य कितना आवश्यक है, इसे भी बतलाना नहीं भूलता । आचार्य जैसे एक कुशल चिकित्सक की भूमिका ही अदा कर रहे हैं। बौद्धिक कवि 'श-स-प' तीन अक्षरों में धर्म की अपार भावनाएँ व्यक्त करता है । 'श' कषाय का शमन
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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