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________________ 108 :: मूकमाटी-मीमांसा आचरण के अनुरूप, उनमें उच्च-नीचता रूप परिवर्तन को स्वीकारा है। इसीलिए 'संकर-दोष' से बचने के साथ-साथ वर्ण-लाभ को मानव जीवन का औदार्य व साफल्य माना है।" अत: अविराम निरन्तरता और यात्रा क्लेश को विस्मृत कर तत्त्व को अन्त में स्वीकार करता है जीव । "सीप का नहीं, मोती का/दीप का नहीं, ज्योति का सम्मान करना है अब!/चेतन भूल कर तन में फूले धर्म को दूर कर, धन में झूले/सीमातीत काल व्यतीत हुआ इसी मायाजाल में,/अब केवल अविनश्वर तत्त्व को समीप करना है,/समाहित करना है अपने में, बस !" (पृ. ३०७) माटी की पतित अवस्था को देखकर उसका महत्त्व कम करके देखना नहीं चाहिए। वह उस बीज का सक्षमरूप है जो संयोग से फूट निकलता है और महाकाय वट वृक्ष का रूप धारण करता है । लेकिन उस बीज को देखकर कोई मामूली चक्षु उसी विराट रूपी वट वृक्ष की कल्पना नहीं कर सकता। _ जीव की साक्षात् गति तभी होती है, जब वह साधना के पथ पर से जाता है । यह, अन्धकारमय संसार में विरले ही सम्भव होता है। साधना पथ स्वीकार करना कोई सुगम कार्य तो नहीं है, जबकि पाप का काम करने पर भी उसे पुण्य रूप फल की कामना है। और पाप का काम करना आसान भी है : "पुण्यस्य फलमिच्छन्ति, पुण्यं नेच्छन्ति मानवः । न पापफलमिच्छन्ति, पापं कुर्वन्ति यत्नतः॥" हाँ, यही दिखाई देता है : "इसे कलिकाल का प्रभाव ही कहना होगा/किंवा अन्धकार-मय भविष्य की आभा,/जो/मौलिक वस्तुओं के उपभोग से विमुख हो रहा है संसार !/और/लौकिक वस्तुओं के उपभोग में प्रमुख हो रहा है, धिक्कार !" (पृ. ४११) आधुनिक जीवन में मिट्टी का महत्त्व विस्मृत हो गया है । मनुष्य का शरीर स्वयं मिट्टी रूप है । उस मिट्टी के साथ मनुष्य का सम्बन्ध बिछुड़ गया है । जो कृषक मिट्टी के साथ जीवन व्यतीत करता है, वह हृष्ट-पुष्ट रहता है। उसे देख रोग भयभीत हो जाते हैं। उसके घर में मिट्टी के बर्तन हैं और उसका घर भी मिट्टी से लिपा-पुता है । पर, आज के सभ्य जीवन में उस किसान की गिनती नहीं। मिट्टी का महत्त्व न जानने वाला आधुनिक सभ्यताभिमानी मानव अनेक रोगों से पीड़ित है । उसी क्रम से अनगिनत औषधियाँ भी निर्मित हुई हैं। “औषधियों का सही मूल्य/रोग का शमन है।/कोई भी औषधि हो होनाधिक मूल्य वाली होती नहीं,/तथापि/श्रीमानों, धीमानों की आस्था इससे विपरीत रीत वाली हुआ करती है, और जो । बहु-मूल्य औषधियों पर ही टिकी मिलती है।" (पृ. ४०८) आज के समाज ने कहाँ सोचा है : "अहिंसा-परक चिकित्सा-पद्धति/जीवित रहे चिर।" (पृ. ४०९)
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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