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________________ " संसार ९९ का चक्कर है / यह कहावत चरितार्थ होती है / इसीलिए भविक मुमुक्षुओं की दृष्टि में / ९९ हेय हो और / ध्येय हो ९ नव-जीवन का स्रोत !” (पृ. १६७) मूकमाटी-मीमांसा :: 93 इस खण्ड में कवि ने नव रसों की व्याख्या भी की है। ऋतुओं का वर्णन, शृंगार और वीर की व्याख्याएँ काव्य में प्रभावोत्पादन करती हैं। दार्शनिक सूत्रों की सरल व्यावहारिक भाषा में अभिव्यक्ति है। निम्न शब्दों में कितनी बड़ी बात कवि ने कही है : "आना, जाना, लगा हुआ है / आना, यानी जनन- उत्पाद है जाना यानी मरण - व्यय है / लगा हुआ यानी स्थिर - धौव्य है और/ है यानी चिर-सत् / यही सत्य है, यही तथ्य !” (पृ. १८५) .. कवि ने 'शब्द' को महत्त्व दिया है। इस के अर्थ को जानना 'बोध' है, बोध की अनुभूति और विश्लेषण 'शोध' है | शब्द ही ब्रह्म है । 'मूकमाटी' का तीसरा खण्ड 'पुण्य का पालन : पाप - प्रक्षालन' है । इस खण्ड में माटी की विकास यात्रा के माध्यम से पुण्य कर्म के द्वारा श्रेयस्कर उपलब्धि की ओर संकेत है । यदि मनुष्य मन, वचन और कर्म से शुभ कर्म करे तो लोक-कल्याण की कामना होती है, पुण्य का अर्जन होता है। इसमें मेघ से मेघ - मुक्ता का अवतार दिखाया है । मुक्ता कावर्षण होता है। मोतियों की वर्षा हुई उन अपरिपक्व कुम्भों पर । राजा को समाचार मिला। राजा की मण्डली को उन्हें बोरियों में भरने का संकेत मिला । ज्यों ही मोती भरने के लिए राजा की मण्डली नीचे की ओर झुकी, आकाश में गुरु गर्जन हुआ- 'अनर्थ ! पाप !' परन्तु कुम्भकार ने यह सोचकर कि मुक्ता राशि पर राजा का अधिकार है, उसे ही समर्पित किया । कवि कहता है धरिणी का ही कार्य है कि वह जल को जड़त्व से मुक्त कर मोती बना देती है । उसे नीचे गिरने के बजाय ऊँचे स्थान पर पहुँचाने का कार्य धरती ही करती है : 46 'जल को जड़त्व से मुक्त कर / मुक्ता-फल बनाना, पतन के गर्त से निकाल कर / उत्तुंग - उत्थान पर धरना, धृति-धारिणी धरा का ध्येय है ।" (पृ. १९३) इस काव्य में नारी की महिमा को मण्डित किया गया है । कवि का कथन है कि जो जीवन में मंगलमय महोत्सव लाती है, वही 'महिला' है । वही पुरुष को सही रास्ता दिखाती है, सबल पुरुष भी इसके सामने निर्बल पड़ जाता है। यह धरती तब तक सम्पदा -सम्पन्ना रहेगी, जब तक इस पर 'कुमारी' रहेगी, जो प्राथमिक मंगल है। इसमें सम, शील और संयम है। वह पुरुषों में धर्म, अर्थ और काम को संयत करती है। वह अपना और अपने पति का जीवन कल्याण भावना पूर्ण बनाती है, हित की भावना से ही उसे 'दुहिता' कहा गया है । कवि ने इस प्रकार महिला, अबला, नारी, कुमारी, स्त्री, दुहिता, मातृ शब्द की व्याख्या कर उसकी महानता की ओर संकेत किया है : "यही कारण है, कि यहाँ / कोई पिता- पितामह, पुरुष नहीं है जो सब की आधार-शिला हो, / सब की जननी / मात्र मातृतत्त्व है ।" (पृ. २०६) इस आध्यात्मिक यात्रा को कवि ने सुन्दर शब्दों में व्यक्त किया है। साधक की अन्तरदृष्टि में सदैव साधना की
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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