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________________ 'मूकमाटी' : यथार्थ की सच्ची कहानी प्रो. (डॉ.) माजदा असद आचार्य विद्यासागर की ‘मूकमाटी' अपने नाम के विपरीत शब्दों की जुबान धारण करके बोलती है और खूब बोलती है। ऐसे-ऐसे सन्देश दे जाती है जो सामान्यत: मूक के लिए सम्भव ही नहीं है । | 'मूकमाटी' का प्रारम्भ प्रकृति के खुले प्रांगण से होता है जहाँ सीमातीत शून्य में नीलिमा के नीचे नीरवता छाई हुई है । 'निशा का अवसान' 'हरिऔध' की 'प्रियप्रवास' की प्रारम्भिक पंक्तियों की याद दिला देती है । प्रकृति मानवीकरण कहीं ‘प्रसाद' के पास पहुँच जाता है तो कहीं 'पन्त' के नौका विहार की गंगा के मानवीकरण के समीप ले जाता है। मुनि विद्यासागर ने पृष्ठ दो पर 'अबला बालाएँ' - 'तरला ताराएँ' के पतिदेव के रूप में चन्द्रमा को चित्रित किया है। प्रश्न उठता है कि क्या इक्कीसवीं सदी में पहुँचते हुए भी हम बालाओं को सबला का रूप नहीं देंगे? उनको अबलाएँ ही बनाए रखेंगे? क्या यह भारतीय समाज की विडम्बना नहीं है ? इसी तरह यहाँ चन्द्रमा के साथ पति शब्द का प्रयोग भी बहुपत्नीवाद को समर्थन प्रदान करता है। पति के स्थान पर और कोई शब्द होता तो ज्यादा अच्छा होता । संवादों का-सा आनन्द भी 'मूकमाटी' में मिलता है : कर्त्तव्य बुद्धि और कर्म का महत्त्व भी देखने को मिलता है : O 'मूकमाटी' मानव जीवन से जुड़ी हुई मानव मन से बँधी हुई रचना है, जो वास्तविकता और यथार्थ को पहचानती है। O O “अरे ! अरे ! यह क्या !/ कौन-सा कर्तव्य है ? / किससे निर्दिष्ट है ? किस मन्तव्य से / किया जा रहा है ?/... यदि नहीं है तो माटी के मुख से / रुदन की आवाज़ क्यों नहीं आई ?” (पृ. २९) D O " कर्तृत्व- बुद्धि से / मुड़ गया है वह / और / कर्तव्य - बुद्धि से जुड़ गया है वह । / हाँ ! हाँ !! / यह मुड़न- जुड़न की क्रिया, आर्य ! / कार्य की निष्पत्ति तक / अनिवार्य होती है..!" (पृ. २८-२९) " पीड़ा की अति ही / पीड़ा की इति है ।" (पृ. ३३) " वास्तविक जीवन यही है/ सात्त्विक जीवन यही है / धन्य !" (पृ. ३३) “कहाँ तक कहें अब !/ धर्म का झण्डा भी / डण्डा बन जाता है शास्त्र शस्त्र बन जाता है / अवसर पाकर ।" (पृ. ७३) " गुणों के साथ / अत्यन्त आवश्यक है / दोषों का बोध होना भी ।" (पृ. ७४) “काँटों से अपना बचाव कर / सुरभि - सौरभ का सेवन करना विज्ञता की निशानी है/सो/ विरलों में ही मिलती है !" (पृ.७४) यह काव्य कल्पना की कोरी उड़ान नहीं, वास्तविकता के ठोस धरातल को अनुभूति करके लिखा गया है, जिसमें ज़िन्दगी की हक़ीक़त छिपी है । यथार्थ की सच्ची कहानी है । वास्तविकता की अभिव्यक्ति है । धरती का चित्रण माँ के रूप में हुआ है। इससे कवि का मातृभूमि प्रेम झलकता है । कविता में दार्शनिकता भी
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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