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________________ 26 :: मूकमाटी-मीमांसा और प्रांजल होने के साथ-साथ अपनी भंगिमा में नितान्त सक्षम और शक्त है। इस प्रकार जब हम परम्पराप्रतिष्ठ संस्कृत महाकाव्यों के साथ इस भाषा निबद्ध अतिमंजुल कृति की तुलना करते हैं तब पाते हैं कि क्या वस्तु विधान, पात्रयोजना, संवाद विधान और क्या भाव व्यंजना और विचार विन्यास तथा भाषा भंगिमा - सभी बिन्दुओं पर यह अपना एक वैशिष्ट्य और पहचान बनाती है। सर्वाधिक आकर्षण और रेखांकन का बिन्दु है इसके मुख्य पात्र का साधारण स्तर से उठना और सर्वोत्कृष्ट बिन्दु पर प्रतिष्ठापना । इससे रचयिता ने यह बताया कि कोई भी नायक हो सकता है। हर सत्तावान् पदार्थ में महासत्ता अपनी पूर्ण अभिव्यक्ति की सम्भावना रखती है । आवश्यकता है अहंकारविहीन, समर्पण शील, यम-नियम - परायण साधना की, तितिक्षा की, संघर्ष और तूफानों में भी विश्वास और श्रद्धा की लौ को न बुझने देने की। साधना से सब सम्भव है। दूसरा वैशिष्ट्य है चिरन्तन विषयों के साथ अद्यतन समस्याओं से भी सम्पृक्त रहने की। अपनी इन विशिष्टताओं के साथ यह महाकाव्य भविष्य में भी सहृदय पाठकों के बीच अपना स्थान निर्मित करेगा । ॐ पृष्ठन्छ और मछली कहती है-: समाधि को बस देख सकूँ।
SR No.006154
Book TitleMukmati Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve, Rammurti Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2007
Total Pages646
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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