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लिखित सं० १८२९ री जोड़
ढाल : १७
दूहा
अखेराम जी गण थकी, टर फिर आवत ताम। भिक्खू लिखत कियो इसो, सुणो राख चित ठांम।।
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ए तो स्वाम बड़ा सुखकारी रे, भिक्खू नी बुद्धि भारी। आ तो उत्पतिया अधिकारी रे, निपुण न्याय नेतारी ॥ध्रुपदं॥ अखेरामजी रा गण मांहै, आवण रा परिणामो। बलि परिणाम संजम पालण रा, देख्या अति अभिरामो॥ पिण अप्रतीत घणीं ऊपनी, जो गण सूं अभिलाखै।
ए प्रतीत पूरी उपजावै, अनंत सिद्धां री साखै ।। ४ तो टोळा मांहि फिर लेणां, तसु बिध सुणो उदारु।
सभाव आप रो फेर बड़ां रे, छांदे चालणो वारु॥ ___ चारित्र सुद्ध पालणो चोखो, मुनिवर नों आचारो।
दीठोईज अछे नहीं छानो, आछी रीत उदारो॥ कदाचित ए टोळा सेती, न्यारा टळे स्वमेवां। तो च्यांसू ही आहार तणां, पचखांण करै तो लेवां॥ खुणस धरी नै अधिक चणो', काढी नै ततखेवां । अळघा ह्वेण तणां पचखांण, करे तो मांहै लेवां ।। संलेखणां संथारो संत, करायां तुरत करेवां ।
ते पिण नां कहिवा रा त्याग-करै तो गण में लेवां ।। ९ धेठापणो सभाव में, अविनीतपणे बलि देखे।
अथवा मुनि रे चित नहीं वैसे, अवगुण जांण विशेषे॥ १० इत्यादिक अनेक बोलां सूं, छांडै संत सुभेवा।
तोच्यारआहार मुख में घालण रा, त्याग करै तो लेवां।।
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१.लयः ए तो जिण मारग रा नायक रे २. अधिकारी ३. अधीन ४४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
४. आक्रोश। ५. त्रुटि। ६.धृष्टता।