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सोरठा
२५ आटादिक रै मांहि, अथवा आटादिक विना।
अल्प आहार जो आय, तो अधिक विगै री आगन्या।। २६ अधिक विगै रे काज, मिल्यां आहार नहीं छोड़णो।
अधिक विगै नो साज, आहार अल्प मिलवै दियो।
'आचार्य पासै साधु-साधवी, शेखे काळ चोमास ।
रहै त्यारै मर्याद नहीं ए, सूंस नहीं ए तास॥ २८ साधु-साधवी कदै घणा हुवै, कदेयक थोड़ा थाय।
कदै आहार बहुत आवै, कदेयक थोड़ो आय। २९ तेह तणों अवसर आचारज, देखी लेसी ताम ।
त्यांरो कोई बीजो साधू, लेण न पावै नाम।
सोरठा
३० इण अक्षरे कर तास, शेष काळ चौमास में।
साधवियां गणि पास, रह्या स्वाम नी आगन्या।। ३१ गणि आज्ञा बिना शेष काळ, चोमास रहै जितरा दिन रूंस।
त्याग सूंखड़ी पंच विगय नां, जावजीव ए सूंस॥ ३२ कोइ गण मांहि थकी टळी . नीकळे, अथवा काढ़े बार।
तो पिण तिण नै त्याग अछ, ए जावजीव लग सार।। ३३ यूं कहिणो नही भेळा थकां, म्हारै था त्याग सुमाग।
अबै म्हारै कोई सूंस नहीं, इम पिण कहिवा रा त्याग।। ३४ कोई लोळपी थको कदाचित, विगै खावा री हूंस।
टोळा बारै टळे कर्म वस, तिण रे पिण ए सूंस।, ३५ वर्ष गुणसठै स्वाम भिखनजी, बांधी ए मर्याद ।
संवत् मिति रो नाम नहीं, पिण हुंती धारणा याद।। ३६ सवंत् उगणीसै चवदै विद, अष्टमी पहिलो जेठ। _ भिक्खू भारीमाल ऋषराय प्रतापै, जयजश संपति भेट । ३७ समण तीस इक सो इक समणी, सखर संपदा सार। - जयवर गणपति संपति जोड़ी, लाडनूं शहर मझार॥
१. २. लयः सीता आवै रे धर राग...।
लिखतां री जोड़ : ढा० १६ : ४३