SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लिखित सं० १८५९ री जोड़ ढाळ १६ दूहा वर्ष गुणसठै स्वाम जी, बांधी वर मर्याद। ते पिण कर गणपति तणै, सखरी भाव समाध ।। २ भिक्खू भजले रे धर भाव॥ धुपदं॥ साधु-साधवी नी मर्यादा, बांधी भिक्षु स्वाम। एक दिवस माहै घी लेणो, वे पइसा भर ताम॥ च्यार पइसा भर मिष्टान, विगै लेणो उनमान। मिश्री नै गुल खांड पतासा, आदि देई सहु जान ।। अधसेर दूध दही तिम गिणणो, तिम अधसेर ही खीर। तिम अधसेर धनागरो जाणो, गणपति आण सधीर || खाजा सांकुली पापड़ीयादिक, पाव तण उनमान। पाव सीरा लापसी कहियै, चूरमादिक पहिछाण। एह माहिली विगै कदाचित थोड़ी थोड़ी आय। पाव तणां उनमान मांहै, लेखव लेणी ताय।। ६ सोरठा ७ खाजा सांकुली आदि, पाव कह्या छै स्वाम जी। सीरा लाफी चूरमादि, ए पिण पाव कह्या जुदा॥ ८ खाजा सांकुली पाहि, फीकी कड़ाई विगय है। वलि अल्प घृत गुलरी ताहि, तेल तणी पिण तिण मझे।। सीरा लापसी मांहि, खांड तणी वस्तु सहू। वलि बहुत घृत गुल री ताहि, मालपुवादिक तिण मझे।। खाजा सांकुली मांहि, अल्प घृत नी जे लापसी। अति घृत वाली ताहि, सीरा में गिणणी सही। ११ कदाच जो नहिं आय, सीरादिक नी जे विगय। तो अधसेर लिवाय, खाजा सांकुली आदि जे॥ १. लयः सीता आवै रे धर राग......। लिखतां री जोड़: ढा० १६ : ४१
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy