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लिखित सं० १८५९ री जोड़ (ढा० ३)
दाळ १४
दूहा
लिखत गुणसठा भिक्खू स्वाम
री हिवै कहियै तीजी ढाळ। तणां भला, वार वचन विशाल॥
'वर भिक्खू नी मर्याद, अखंड आराधिये।
ते सुगुणा सुवनीत के, शिव पद साधियै॥धुपदं॥ २ बीस कोस चालीस, अथवा अळगी दूर सूं।
वासू कर चउमास, उतरिया जरूर सूं । ३ अथवा शेखे काळ, तंतू जाचियो महीं।
आप मतै फाड़ तोड़, बांट पहिरणो नहीं। ४ कदा जरूर रो काम, प. तो तिण अवसरै।
जाडो-जाडो वांट लेणो, महीं परिहरे॥ तंतू महीं गणि आंण विना बांटणो नहीं। महीं तो गणपति पास, आण मैलणो सही॥ आचार्य जथा जोग, इच्छा आवै ज्यूं दिये। ते लेणो तिण री बात, पाछी 'न' चलाविये॥ इण नै तंतू सार, महीं दीधो सही। इण नै मोटो दीध, एम कहिणो नहीं।। कर्म धको किण वार, देवै किण ही भणीं। ते टोळा सूं न्यारो, पडै चूकै अणीं॥ अथवा टोळा वार, कादै तिण नै कदा। तथा आपहीज न्यारो, हुवै ग्रहै आपदा॥ . तो इन सरधा रा जाण, भाई बाई हुवै तिहाँ।
रहिणो नहीं तिण ठाम, टालोकर नै तिहां। __एक भाई बाई, त्यां पिण रहिणो न अछै।
वाटै वहतो एक रात्रि, ते पिण स्व इछै॥ १२ रहै . कारण सूं तो पंच, विगै नै सूंखड़ी।
खावा रा छै त्याग, अनंत सिद्ध साखे करी।। १३ लिखत गुणसठा री ढाळ, तीजी वैसाख में।
विद चवदश सुखकार, उगणीसै चवदै समै॥ १. लय-काया करै रे पुकार जंगल विच क्यूं धरी ३८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था