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________________ १० पांचूं पदां री साख सूं, त्याग अवगुण रा जाण। (किण ही) संत सत्यां री, संक प.ज्यूं बोलण रा पचखांण।। ११ कदा विटळ उ होय नै, भांगै सूंस अयाण। तो हळुकर्मी नै न्यायवादी. तो, मूळ नै मानै वाण॥ १२ उण सरिखो विटळ कोई मानै, ते लेखा में नांहि। इस विध भिक्खू भाखियो, प्रगट लिखत रे मांहि ।। १३ हिवै किण ही नै छोडणो, पडै मेलणो ताम। किण ही चरचा बोल रो, प. किंवारे काम ।। तो बुधवान मुनीश्वरु, विचार नैं तिण वार। करणो इम भिक्खू कह्यो, अखर लिखत में सार॥ १५ बले सरधा रो बोल पिण, बुधवंत हुवै ते सोय। विचार नै संचै तदा, बैसाणणो अवलोय॥ जो कोई . बोल वैसे नहीं, तो तांण न करणी रंच। केवळिया नै भोळावणो, पिण अंस न करणी खंच॥ १७ लिखत गुणसठा री कही, दूजी ढाळ सुभाष। उगणीसै चवदै समै, वदि चवदश वैशाख। लिखतां री जोड़: ढा० १३ : ३७
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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