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११ बीजा साधां नै समभावै, प्रतीत जो तिण री नहीं आवै
तो नहि करणो छै प्रस्तावै। कियां पछै कोई अजोग होयो, ते पिण बुधवंत मुनि कहै सोयो,
___ छोड़ देणो तसु कहिण सुजोयो।
किण ही धेषी रा कह्या सूं छोड़णो नाहि॥देखो०॥ १२ नव पदार्थ नै.ओळखाई, दीक्षा देणी छै सुखदाई,
आचार पाळा छां हिव ल्याई। तिण हिज रीत पाळणो चोखो, इण माहैं कोई जाणो जोखो,
ते हिवड़ां कहिजो तज दोखो।
पछै माहोमांहि तांण न करणी॥देखो०॥ जो किण नै भ्यासै दोष विपरीतो, तो खंच नहीं करणी ए नीतो,
करणी बुधवंत री प्रतीतो। भारमलजी री इच्छा थाई, जद चरण लघु शिष्य नै हित ल्याई,
अथवा चरण वृद्ध गुर भाई। सूंपै गण रो भार समाधी, सर्व संत सतियां गुण साधी,
एकण री आज्ञा आराधी। चलणो है तसु आण प्रमाणे, असमात्र नहीं करणी ताणो,
एहवी रीत बांधी छै जाणो।
संत सत्यां रो मार्ग चाले जठा तांई।देखो०।। १४ गुणसठा लिखत री पहिली ढाळ, उगणीसे चवदै गुणमाल,
विद वैशाख दशम तिथि न्हाल। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय प्रसाद, रची जोड़ जय संपति साध,
सहर सुजानगढ़ अविराध । संत सती एक सो दस हुंता ॥देखो०॥
लिखतां री जोड़ : ढा० १२ : ३५