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________________ लिखित सं० १८५९ री जोड़ (ढा० २) १ २ ३ ४ वर्ष गुणस श्रोता चित दे ढाळ १२ दूहा स्वाम जी, सांभळो, आणी अति बांधी वर 'देखो प्रबल प्रज्ञा भिक्खू स्वाम की । विविध मर्यादा बांधी वासू, वारी हो स्वामीजी थांरा नाम की || ध्रुपदं ॥ अरे सुगुणा ! ऋष भिक्खण सगलां संता रे, मर्यादा बांधी छे ज्यां रे, संवत् अठार बत्तीस त्यारै । मर्याद थकी निकसांण, ते तो सर्व कबूल सुजाणं, तिण तिलोकचंद नै चंदरभाणं । ए मर्यादा दोषण तेह नै मोटो लागो, दशमा लोप निकलिया, भागल हूवा कर्मा छलिया, ते तो जिन मार्ग सूं टळिया । प्राछित नो तसु दागो दीधा विण लेवा रा त्यागो । एह त्याग छै सहु संतां रे, ॥ देखो० ॥ सुख साधं, बांधते लिखिये आराधं । हिवै आगली वर मर्यादं, कायक फैर नवी सर्व संत सतिया रे ताह्यो, पूछी नै या कनै कहिवायो, सगला संत सती सुखदायो, भारमलजी री शेखै मर्याद । अहलाद ॥ मर्यादा बांधी सुखदायो । आगल लिखिये छै ते मर्यादा || देखो० ॥ आज्ञा मांह्यो, रुड़ी रीते चलणो ताह्यो । काळ विहार सचेती, चोमासो करणो सुभ खेती । भारमलजी री आणा सेती । आज्ञा विना कठेइ न रहिणो छै || देखो० ॥ १. लय- अरे कनवा गो चरावत वन वन डोलत आण अणाचक । " लिखतां री जोड़ : ढा० १२ : ३३
SR No.006153
Book TitleTerapanth Maryada Aur Vyavastha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2004
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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