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लिखित सं० १८५२ री जोड़ (ढा०-४)
दाळ : ११
दूहा
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लिखत बावना री हिवै, चौथी ढाल समाध। धेठी अज्जा ऊपरै, बांधी ए मर्याद ।।
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'स्वाम के वच प्यारे । आ तो स्वाम मर्यादा भारी, सासण सुखकारी ॥ धुपदं ।। २ किण ही आर्या नै माहोमांह्यो, ऊपजै एहवा अध्यवसायो।
स्वाम के वच प्यारे । ३ कारण विण ले कारण रो नामो, औरां आगै करावै कामो।। ४ बलै कारण रो नाम जतावै, औषध सूंठादिक उन्हों आहार ल्यावै।। ५ इत्यादिक संक मेटण रो उपायो, मर्यादा बांधी छै ताह्यौ।। ६ जितरो गोचरी आप न उठै, तिण सूं विमणो ऊठणो पूरी। ७ विहार माहै बोझ उपड़ावै, विगै त्याग जिता दिन पावै।। ८ बलै उण रो बोझ पिण पाछो, ओ तो विमणो उपाड़णो जाचो॥ ९ आहार आछो जो . लेवै, तिण रो पाछो विमणो टाळ देवै॥ १० किण रो बहिर मांगै नै ल्यावै, तो पिण विमणो टाळणो भावै।। ११ विगत लिखिये छै तेहनी, आ तो खोड़ मिटावण जेहनी॥ १२ पांच लूंग खाय तो तिण नै, इक दिन विगै टाळणो जिणनै॥ १३ टका भर निज पांती रो आवै, घृत तिण दिन टाळणो चावै।। १४ इम बीजाई बोल विशेखो, लिखिये छै त्यांरो पिण यो लेखो॥ १५ अधेला भर सूंठ लेवा रो, इक दिन सपी टाळणो त्यांरो॥ १६ अधेला भर अजमा रो, टका भर सपी टाळणो ज्यारो॥ १७ खांड सूं दुगुणो घी जाणो, मांगी आणै तो टाळणो पिछाणो। १८ मिश्री सूं चौगुणो घृत सारो, मांगी ल्यावै तो टाळणो जिवारो॥ १९ गुळ सुं दुगुणो घृत टाळो, अथवा गुळ बरोबर घृत न्हालो।।
FEATHEREFORE
१. लय : ज्यारे सोहे केसरिया साड़ी लियां फिरत राधिका प्यारी। . २. दुगुणा।
लिखतां री जोड़ : ढा० ११ : ३१