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१३ हुतो नै अणहंतो चणो, काढण रा त्यागो।
'पिट्ठी मंसं न खाइज्जा', दशवैकालिक' सागो।। १४ रहिसै-रहिसै लोकां रे दिल, न घालणी संको।
आसता उतारण तणां त्याग छै, मेट देणो बंको। कदा कर्म जोग तथा कषाय नै, वस, द्वेष धरी हिरदी।
सहु टोळा रा संत-सत्या नैं, असाध जो सरधै॥ १६ असाधुपणों बलि आपस मांहे, पिण सरधि कै न्यारी।
अथवा भेषधारयां में जावै, कर्म-रेख कारी।। १७ तो पिण अठी रा संत अनै, साधवियां री सोयो।
अवगुण बोलण तणां त्याग छै, भिक्षू वच जोयो।। १८ उगणीसै चवदै चैत कृष्ण छठ, लिखत बावना री।
प्रथम ढाळ जोड़ी जय गणपति, संपति सहचारी।
१.दसवेआलियं ८।४६
२६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था