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लिखित सं० १८५२ री जोड़ (ढा०-१)
ढाळ : ८ दूहा
रे
१ संवत् ___ मर्यादा
अठारै
बांधी
बावने,
मुनि,
सतियां
भिक्षू
सुखकार। गुण-भंडार।
'भिक्षू दिसावंत भारी क, भिक्षू दिसावंत भारी। सतियां रे मर्यादा सखरी, बांधी सुखकारी॥ध्रुपदं। सतियां सर्व तणें सुखदायक, मर्यादा बांधी। सुध आचार पाळणो चोखो, सखर चित्त सांधी।। आपस मांहि हेत राखणो, हरष अधिक आणी। तिण ऊपर मर्यादा बांधी, शिवपुर नी नीसाणी।। गणरा संत-सत्यां में संजम, सरधो सुखदाइ। आपस मांहि संजम सरधो (ते) रहिजो गण मांहि। काइ कपट-दगा सूं साधवियां रे, भेळी रहै जाणो। अनंत सिद्धां री आण छ, पंच पद री आंणो।। समणी नाम धराय असाधवियां सूं रहै भेळी। अनंत संसार बधै छै तिणरे, जिनवर तसु हेली।। जिणरा चोखा परिणाम हुवै, प्रतीत उपजाओ।
(किण ही) संत-सत्यां रा अवगुण, कहि खोटा मत सरधावो।। ८ मन भांगी फारण के रा, त्याग सखर जाणो।
खोटी सरधावी नैं फारण के रा, पिण पचखाणो।। ९ किण ही सूं साधुपणों, पळतो दीसै नाही।
तथा सभाव मिलै नहीं किण सूं, प्रकृति दुखदाई।। १० तथा कषायण धेठी, जाण कनै को ना राखै।
तिण नै अळगी करै टोळा थी, विनय सुगुण पाखै।। ११ तथा क्षेत्र आछो न बतायां, वस्त्रादिक काजै।
अजोग जाण गण सूं अळगी, करती जाणै साजै॥ १२ इत्यादिक अनेक कारण सूं, गण सूं है न्यारी।
(तो किण ही) संत-सत्यां रा अवगुण, बोलण रा त्याग तंत सारी।। १.लय-चेत चतुर नर कहै तनै सतगुर किस विध.......।
लिखतां री जोड़ : ढा०८ : २५