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सं० १८५० रो लिखत (साधुवां री मरजादा रो) ५. (पृष्ठ १९ से संबंधित)
सर्व साध नै सुध आचार पाळणो नै मांहोमां गाढो हेत राखणो, तिण ऊपर मरजादा बांधी
१. कोई टोळा रा साध - साधवियां में साधपणों सरधो, आप मांहै साधपणो सरधो तको टोळा मांहै रहिजो ।
कोइ कपट दगा सूं साधां भेळो रहै, तिण नै अनंता सिद्धां री आण छै। पांचू पदां री आण छै ।
साध नांव धराय नै असाधां भेळो रह्यां अनंत संसार बधै छै ।
२. जिण रा चोखा परिणाम हुवै ते इतरी परतीत उपजावो। किण ही साध साधवियां रा ओगण बोल नै किण ही नै फार नै मन भांग नै खोटा सरधावण रा त्याग छै । किण सूं इ साधपणों पळतो दीसै नहीं, अथवा सभाव किण सूं इ मिलतो दिसे नहीं, अथवा कषाय, ठो जाण नै कोइ कने न राखै अथवा खेत्र आछो न बताया, अथवा कपड़ादिक रे कारण, अथवा अजोग जाण नै और साधु गण सुं दूरो करै, अथवा आपनै गण सूं दूर करतो जाण नै, इत्यादिक अनेक कारण उपनै टोळा सूं न्यारो परै तो किण ही साध साधवियां रा आंगुण बोलण रा हूंतो अधहूंतो खूंचणो काढण रा त्याग छै । रहिसे-रहिसे लोकां रे संका घाल नै आसता उतारण रा त्याग छै ।
३. कदा कर्म जोगे, अथवा क्रोध वस साधा नै साधवियां नै सर्व टोळा नै असाध सरधै आप में पिण असाधपणों सरधे, नैं फैर साधपणो लेवै तो ही पिण अठीरा साध - साधवियों री संका घालण रा त्याग छै । खोटा कहिण रा त्याग छै ज्यूं रा ज्यूं पाळणा छै । पछै यू कहिण रा पिण त्याग छै- “म्हें तो फैर साधपणो लीधो अबै म्हारै आगला सूंसा रो अटकाव कोइ नहीं" यूं कहिण रा पिण त्याग छै ।
४. किण ही साध आर्य्यां री आसता उतरै, साध आर्य्यां री संका पड़ै ज्यूं, असाधपणो सरधै ज्यूं बोलण रा त्याग छै ।
५. किण ही साध आर्य्या में दोष देखै तो ततकाळ धणी नै कहिणो, अथवा गुरां कहिणो, पण ओरा नै न कहिणो । घणां दिन आडा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उ हीज छै। प्राछित रा धणी नै याद आवै तो प्राछित उण नै पिण लेणो, नही लेवै तो उण नै मुसकल छै ।
६. कोइ सरधा रो आचार रो नवो बोल नीकलै तो बड़ां सू चरचणो पिण औरां सूं चरचणो नही। ओरां सूं चरचनै ओरां रै संका घालणी नही । बडा जाब देवै आप रे ये
परिशिष्ट : लिखता री जोड़ : ४४३