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५४७ थे मोनै बतळावो नहीं किणवारो, जब घणो दोहरो रहै जीव म्हारो।
तिण सूं थे मुझनै बतळावो, मोनै कदे मति छिटकावो।। ५४८ इत्यादिक अधिक धुरताई, ते देखी घणी कपटाई।
म्हानै पाना में अक्षर लिख दीधा, ते पिण लोप्या प्रसिद्धा।। ५४९ त्याग कीया ते पिण दीधा भांग, एहवा देख्या सांग।
मायावियो धूर्त्त जाण्यो कूडो, तिण सूं छोड़ आयो आप हजूरो।। ५५० तिण री संगत सूं हूओ खुराब, गई लोकां मांहि आब ।
हिवै हूं आप तणै सरणै आयो, चरण अमोलक पायो। ५५१ शेष रह्या जे तीन गण बारै, कदा मांहि आवण री धारै।
आर्जियांनै वंदणा किया विण ताहि, गण मांहि लैणा नांहि ।। ५५२ जय गणी त्याग किया इम ताम, पाड़ण यांरी मांम।
इतरै पश्चिम थली सूं आया समाचार, तीजा अवनीत ना तिणवार॥ ५५३ ते पिण कहै छै हूं पिण लेउं दिख्या, धारूं सतगुरु नी शिख्या।
अवगुण वाद न बोलै दाम, गावै शासण रा गुण ग्रांम।। ५५४ इण विधि भायां लिख्यो तिण वार, कागद में समाचार।
जोधांण सैहर तणो चउमास, तेजसी नै भळायो सुवास।। ५५५ साधा नै भेळा करी सुखदाय, जय गणपति कहे वाय।
दोयां नै दिख्या देवा री न आणा, राखजे याद सयांणा।। ५५६ तेजसी नै इम वचन कही तासो, करायो जोधांण चोमासो।
चोमासो मांहि भायो इक आय, कहै गणपति नै वाय।। ५५७ बीजै अवनीत मोनै कह्यो ताम, म्हारै दिख्या लेवा रा परिणाम ।
स्वामीजी आज्ञा देवै सुखदाय, तूं कीजै अर्ज अधिकाय॥ ५५८ ए गुण थांरो भूलसूं नांय, चरण साहज्य सुखदाय।
इत्यादिक विविध अर्ज तिण कीधी, जब जय गणी आज्ञा दीधी।। ५५९ चउमासो उत्तरियां धर खंत, तेजसी आदि दे संत।
पश्चिम थली कांनी विचरी तिवार, कियो पाली सैहर कांनी विहार।। ५६० बीजो तीजो बिहुँ अवनीत ताहि, मिलिया गांम दूंदाडा मांहि ।
बीजै अवनीत कह्यो तिणवार, मोनै दीजै संजम भार।। ५६१ दोय दिवस बहु कीधी अर्ज, इण री चारित्र लेवा री गरज।
परभव री इण रै चिंता प्रसिद्धी, तिण सूं आतमा सूधी कीधी।। ५६२ अर्जियां नै भाव सूं बे कर जोड, वंदणा कीधी मांन मोड ।
नरमाई विनय भक्ति बहु कीधी, तब तेजसी दीक्षा दीधी।।
४१६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था