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५१५ तीजो अविनीत
टळ्यो वार तीन, नीकळ-नीकळ बोल्यो मलीन । चोथो अवनीत टळ्यो वार तीन, नीकळ-नीकळ नै हुआ दीन ॥ ५१६ पंचम अवनीत टळ्यो वार च्यार नीळ-नीकळ हुओ
खुवार ।
बोल्यो
विकार ॥
छठो अवनीत टळ्यो दोय वार, नीकळ-नीकळ ५१७ इसडा अनंत हुआ नै होसी, परभव
सांहमो विरला
बलि आरा अजूणा मांहि, म्हे पिण देख लिया ई मुनि पै सुणीया, केइ मुंहढी समाचार, सांभळ जोड़या उनमांन, कोइ
मुदो
पिछान ।
अधिको ओछो विरुद्ध आयो है कोय, तो मिच्छामि दुक्कडं मोय ॥ ५२० कही भिक्षु नीं जोड़ तणी गाथा केई, बाकी जयजश जोड़ करेही । उगणीसै इकवीसै उदार, वैशाख सुदि चोथ शनिवार ॥
५१८ ए भाव कह्या
गृहस्थ पास केइ ५१९ केइ देखी आसरो
छै
१. डेगाणे ग्राम ।
४१४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
जोसी ।
ताहि ॥
थुणीया ।
विचार ॥
५२१ निन्हव भागलां रो अधिकार, जोड्यो मरुधर देश मझार । ५२२ संवत उगणीसै बाइसै री बात, चोमासो उत्तरीयां विख्यात । बालोतरा कनै 'वीठोजो' गांम, त्यां थी दोय जणा चाल्यां तांम ॥ ५२३ चोथो छठो मन करी विचार, आया मेड़ता सैहर मझार । ताय, आवण अधिकाय ॥ इमवाय, थे टळ
ईडवै गणपति पासै ५२४ एक गृहस्थ बोल्यो
हर्ष टळ फिर गण आय ।
रह्यां आया दोय ||
घणो मन मांह्यो ।
थांनै लेसी कैन लैसी मांय, कह्या इत्यादिक वाय ॥ ५२५ इम सुण छठा रा फिरिया परिणाम, वचन परिसह पांम । वै गणपति पासै सोय, तीन कोस ५२६ पछै छठो न आयो नै चोथो आयो, हरष परतीत, धारी बहुजन मांहि, नवी दिख्या लीधी छेदोपस्थापनीक ग्रह्यो ताह्यो, पिण ते तो समझयो ५२८ चोथो
सूड़ी
रीत ॥
गणपति शासण री ५२७ माह विद बीज
ताहि ।
नाह्यो ||
आयो गणपति पास उदार, छठो कीयो दूजी दिश विहार । गणपति विहार करी सुखदाया, देघाणै' होय बाजोळी आया ॥ ५२९ ग्राम ग्राम रा बहुजन आया, दर्शण करण ऊम्हाया । जनवंद अधिक हुवा तिहां भेळा, च्यार तीर्थ रा मेळा || ५३० छठो नव कोस रो करी विहार, आय गयो तिण वार । आणी मन मांय, पगां पड़ियो छै आय ॥
अधिक
हरष