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४८४ सो इम नांम संभोग रो करी तिवार, तुरत कीयो बिहुं जणा विहार । नव मास पछै निकळियो बार, तिण नै दीक्षा न दीधी लिगार ।। ४८५ ओ पिण थारै पूरो अंधारो, थारै लेखै थां में न विचारो । उण नै भेळो राखै ज्यांसूं किम कीजै आहार, मन मांहै करो विचार || ४८६ इम कह्यां सुद्ध जाब नहीं आयो, कहै आफेइ हुय जासी ताह्यो । म्हांमें पूज पदवी रो नाम न कांइ, वंदणा में नाम घालणो नांही ॥ ४८७ इच्छा आवै ज्यूं विचरां ताही, इण में आज्ञा से कारण नांही । सोय, गुरु न करावणा कोय ॥ सार, ते गुरु
प्रणामै
किण रै ईनाम ४८८ पंच महाव्रत पाळ
कहिणा
उदार ।
री बात न कैहणी ।।
सोय ।
किण रै नांमै दीक्षा नहीं देणी, बले चेला ४८९ सगळां रै सीर मांहै अवलोय, दीक्षा दैणी एक कागद में लिखी बातां अनेक, ते शासन ४९० न्यातीलां नै दर्शण देवा टोळा बारै नकळवा रां होणहार टळै नहीं
मेलंता, तो गण तांम, यांरा कोय,
४९१ पिण
कोई रै म्यातीलां री हुवै रै
४९२ कोई
विचरवारी कोई रै आहार रो ४९३ इण बात सूं आडदो इण तें आप तणों स्यूं जावै । इत्यादिक बात कही घणी ताय, पछै आयो जिण दिशि जाय ॥ ४९४ बीजै' अवनीत सरलपणै बहु बात, कीधी तेजसी आगै विख्यात । ते पिण गण सन्मुख सुखदाई, बात सुणीयांइ अचर्य थाइ ॥ ४९५ बलि कहै यां दलदरयां नै सोय, कहै चोड़ै निषेधो जोय । वंदना करवा रा पिण त्याग करावो, निसंकपणै चित चावो ॥ ४९६ स्वामीजी सूं मिलवा रा भाव है ताय, पिण ठच्चो सो किम रहूं जाय । स्वामीजी मोनै पूछै कदा त्यांही, यांनै श्रद्धो छो ४९७ हूं कहिसूं आप श्रद्धो जिण रीत, हूं पिण श्रद्धं
कांई ॥
बले पूछैला म्हानै श्रद्धो थे कांई, तिण रो तो जाब देवूं
लेउं धर भाव, पड़तो दीसै न
तिण रो म्हारै कोय, हूं जाण
४९८ नवी दीक्षा यां सूं पूरो
सन्मुख पेख ॥
बारै क्यांनै टलता |
१. जीवोजी ।
४१२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
रती नहीं परिणांम ॥
जोय ।
कर्म तणी
गति
दीजै
दिराय ॥
ताय, तो दर्शण मन मांय, तो दो दीजै विचराय । कष्ट देखीजै, तो विहार कराई दीजै ॥ न आवै,
नहीं
रह्यो
वदीत ।
नांही ॥
अटकाव ।
छू सोय ॥